राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय नागरिकों को युद्धग्रस्त यमन से निकालने के लिए भारत सरकार की ओर से चलाया गया अभियान 'ऑपरेशन राहत' सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। दिन-रात की बमबारी के बीच वहां से करीब पांच हजार भारतीयों को बाहर निकाल कर स्वदेश ले आया गया।
यही नहीं, करीब एक हजार विदेशियों को भी वहां से सुरक्षित निकाल लिया गया। यह ऑपरेशन 2011 के उस महा अभियान की याद दिलाता है, जब गृहयुद्ध के शिकार लीबिया से हजारों भारतीय वापस लाए गए थे। इस सब का श्रेय निश्चित ही जनरल वी के सिंह को जाता है | 1 अप्रैल से 9 अप्रैल तक भारतीय वायुसेना के विमानों ने तकरीबन 18 उड़ानों के जरिए ऑरपेशन राहत चलाया। इसके अलावा भारतीय नौसेना के दो युद्धपोतों आईएनएस सुमित्रा और आईएनएस मुंबई के जरिए भी सैकड़ों लोग भारत लाए गए।
ऑपरेशन राहत ने हमारी सेनाओं के शौर्य और कौशल के अलावा भारत की कूटनीतिक शक्ति को भी रेखांकित किया है। इससे एक बार फिर यह साबित हुआ है कि मध्यपूर्व को लेकर हमारी तटस्थता की नीति बिल्कुल सही है और हमें आगे भी इसी पर चलते रहने की जरूरत है। सऊदी अरब से हमारा मधुर संबंध काम आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद वहां के शासक शाह सलमान से लगातार संपर्क में बने रहे। भारतीय खुफिया एजेंसियां अमेरिका और सऊदी अरब की इंटेलिजेंस एजेसियों की मदद से हर पल की जानकारी भारतीय टीम को देती रहीं।
दरअसल, केंद्र सरकार इस बार काफी सचेत थी। इराक में फंसे भारतीयों को निकालने में हुई परेशानियों से उसने सबक लिया था। इस बार उसने सही वक्त पर फैसला लिया। एक केंद्रीय मंत्री को इस अभियान में लगाया गया ताकि वे खुद ऐसे हालात में आकस्मिक फैसले ले सकें। इसका लाभ साफ नजर आया। ऐसे मामलों को नौकरशाहों के भरोसे छोड़ने पर कई चीजें ऐन मौके पर अटक जाती हैं।
यमन में पैदा हुए संकट से तत्काल हमारे आर्थिक हित बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होने वाले, क्योंकि उससे तेल और गैस की आपूर्ति काफी कम होती है। लेकिन शिया-सुन्नी टकराव का रूप ले रहा यह संकट अगर दूसरे खाड़ी देशों में भी फैला तो इसका प्रभाव निश्चित तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। अभी पाकिस्तान में एक तबका अपनी सरकार से इस मामले में सीधे हस्तक्षेप की मांग कर रहा है। अगर यह बात आगे बढ़ी तो टकराव की आग ठीक हमारे पड़ोस तक, बल्कि घर तक फैल सकती है। हमें सावधान रहने की जरूरत है |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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