पहले व्हाइट हॉउस के दरवाजे महिलाओं के लिए खोलो

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। अभी तक व्हाइट हाउस के दरवाजे सिर्फ पुरुषों के लिए खुले रहे हैं। वैसे विचार के स्तर पर तो यही कहा जाता है कि कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति बन सकता है, पर सच यही है कि अमेरिका की नींव रखने वाले जब इस खूबसूरत विचार को लिख रहे थे, तब सोच शायद यही थी कि पुरुष वर्ग का कोई भी सदस्य राष्ट्रपति हो सकता है, और उन्होंने जो प्रावधान किया, वह बहुत लंबा चला, बहुत मजबूत साबित हुआ।


शायद इसीलिए अमेरिका में आज बहुत से लोग यह चर्चा करते दिख जाएंगे कि उनकी राजनीति बहुत कुलीन हो गई है, उसमें वंशवाद आ गया है। आलोचकों की शिकायत है कि अमेरिका के विकल्पों को क्लिंटन और बुश परिवार के बीच सीमित किया जा रहा है। लेकिन यहां पर एक सवाल यह भी पूछा जाना चाहिए कि अगर किसी खास परिवार में पैदा होने से राजनीति में मदद मिलती है, तो यह लाभ अभी तक किसी महिला के पक्ष में क्यों नहीं गया? क्यों किसी खास परिवार की महिला व्हाइट हाउस नहीं पहुंची?

अमेरिका में कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में उतर सके, इसके रास्ते में बहुत सारी बाधाएं हैं। लेकिन सबसे बड़ी बाधा महिलाओं के सामने है। वह चाहे अमीर हो, गरीब हो, श्वेत हो, अश्वेत हो, बूढ़ी हो, जवान हो, अनुभवी हो या फिर अनुभवहीन, पूरे इतिहास में किसी भी महिला को उस रास्ते तक पहुंचने का मौका ही नहीं मिला, जो व्हाइट हाउस की तरफ जाता है।

सच यही है कि किसी महिला के लिए अमेरिका का राष्ट्रपति बनना अभी तक असंभव ही साबित हुआ है। अमेरिका को बुश और क्लिंटन के बीच चुनाव के मौके तो पहले भी मिले हैं, लेकिन उसे कभी किसी महिला और पुरुष के बीच चुनने का विकल्प नहीं मिला। अवसरों की भूमि कहलाने वाले अमेरिका का सच यही है कि यहां कुछ अमेरिकी बाकियों के मुकाबले ज्यादा आजाद हैं। दूसरे देशों और संस्कृतियों में औरतों के साथ किए जाने वाले बर्ताव को लेकर अमेरिका अक्सर शिकायत करता है, लेकिन जब खुद उसकी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसके लिए पर्याप्त गुंजाइश न हो, तो उसे ऐसी शिकायत का क्या अधिकार है? 

अमेरिका की समस्या यह है कि यह अपने श्रेष्ठ होने की भावना से इस कदर ग्रस्त है कि उसे लगता है कि वह पूरी दुनिया को अपनी तरह का बनाकर ही खुश रख सकता है। अमेरिका अब भी पूरी दुनिया में लोगों को मारता और प्रताड़ित करता है, इस विश्वास के साथ कि उसे यह करने का नैतिक अधिकार है। यह बहुत अजीब है कि एक ऐसा देश, जो किसी महिला को प्रशासन की बागडोर सौंपने से इनकार कर देता है, वह पूरी दुनिया को अपने जैसा उदार लोकतंत्र देने के लिए तैयार बैठा रहता है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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