भोपाल। इंदौर एवं भोपाल में लो-फ्लोर बसें चला रही कंपनी प्रसन्न पर्पल पर सड़कों पर एकाधिकार चाहती है। इसके लिए उसने प्रेशर क्रिएट करना शुरू कर दिया है। इधर सरकार को अल्टीमेटम दिया है तो दूसरी ओर सिटी बसों के खिलाफ पेड केंपेन शुरू हो गया है। कुछ मीडियाकर्मी और समाजसेवी संस्थाएं गरीबों की सस्ती सिटी बसों के खिलाफ तमाम दलीलों के साथ माहौल बनाएंगे।
खबर आ रही है कि प्रसन्न पर्पल ने कुछ मीडियाकर्मियों एवं एनजीओ को इसके लिए हायर किया है। वो भोपाल व इंदौर में चल रहीं सिटी बसों को खतरनाक और कंडम साबित कर उन्हें सड़कों से उतारने के लिए काम करेंगे। यह अभियान पूरे एक माह चलने वाला है।
सूत्र बताते हैं कि यूं तो यह जनहित में चलाया जा रहा अभियान प्रतीत होगा परंतु मूलत: यह पेडकेंपेन है। पढ़िए क्या क्या टास्क दिए गए हैं इस पेड केंपेन में :-
- सिटी बसों के खिलाफ जनता में माहौल तैयार करना।
- तर्कों के साथ प्रमाणित करना कि कितनी खतरनाक हैं सिटी बसें।
- सिटी बसों के स्टाफ को चरित्रहीन एवं अपराधी किस्म के बताना।
- महिलाओं के लिए सिटी बस का सफर असुरक्षित प्रमाणित करना।
- आरटीओ पर प्रेशर बनाना कि वो सिटी बसों के खिलाफ अभियान चलाए।
- सरकार पर बार बार सवाल पूछकर प्रेशर क्रिऐट करना।
- सिटी बसों में होने वाले अपराधों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करना।
फायदा क्या होगा
फायदा यह होगा कि सिटी बसें कम से कम हो जाएंगी और यात्रियों को मजबूरन लो-फ्लोर बसों में ही सफर करना होगा। एक बार मोनोपॉली बन गई तो फिर मौजा ही मौजा। किराया कभी भी बढ़ाया जा सकता है। यात्रियों को मानना ही होगा। उनके पास कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। मार्केट के कॉम्पटीशन खत्म हो जाएगा।
अभी क्या हो रहा है
फिलहाल वो यात्री जो लो-फ्लोर बसों का मंहगा किराया नहीं देना चाहते और लो-फ्लोर बसों के लिए इंतजार करना नहीं चाहते वो सिटी बसों का उपयोग कर रहे हैं। भोपाल एवं इंदौर में ऐसे यात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है क्योंकि लो-फ्लोर बसें कंडम होती जा रहीं हैं और यात्री सिटी बसों का रुख कर रहे हैं।
होना क्या चाहिए
आरटीओ और सरकार को चाहिए कि वो एक साथ समानभाव से अभियान चलाए। अनुबंध के तहत जिस तरह की बसें चलाने का वादा प्रसन्ना पर्पल ने किया है यदि उस तरह की बसें नहीं चल रहीं हैं तो उन्हें पकड़कर राजसात कर ले। साथ ही कंडम हो चुकीं सिटी बसों को भी राजसात कर उनकी नीलामी करा दी जाए। मिलने वाली रकम में सरकारी खर्चे काटकर शेष राशि बस मालिक को थमा दी जाए। मजबूरन उन्हें नई बस खरीदनी ही होगी। ऐसी स्थिति में बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी। यात्रियों को फायदा होगा। हां प्रसन्ना पर्पल की राजनीति नहीं चल पाएगी और आटीओ की रिश्वत भी मारी जाएगी।