भोपाल। मध्य प्रदेश के श्रमिकों को अब नियुक्ति के महज 180 दिनों की सेवा के बाद उसी कैलेंडर वर्ष में अर्जित अवकाश का लाभ मिल सकता है। यह नियम राज्य की उन फैक्टरियों में कार्यरत कर्मचारियों पर लागू होगा जहां कम से कम 10 कर्मचारी अथवा बिजली कनेक्शन वाली फैक्टरी में कम से कम 20 कर्मचारी कार्यरत होंगे। फिलहाल कम से कम 240 दिनों तक काम करने वाले कर्मचारियों को ही वेतन के साथ सालाना छुट्टियां दी जाती हैं। कर्मचारी अगले कैलेंडर वर्ष में इन छुट्टियों का इस्तेमाल कर पाते हैं।
यह अध्यादेश के रूप में भेजे गए राज्य सरकार के उन 12 प्रस्तावों में से एक है जिन्हें केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने अपनी मंजूरी दी है। मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए पिछले साल अक्टूबर में ये प्रस्ताव भेजे थे ताकि राज्य के 17 श्रम कानूनों में संशोधन किया जा सके। चूंकि ये सभी कानून संविधान की अनुवर्ती सूची में हैं इसलिए इनमें संशोधन के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी लेना अनिवार्य है। हालांकि इन संशोधनों के लिए राष्ट्रपति की अनुमति मिलना अभी बाकी है। नियोक्ताओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण पहल के तहत केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने ठेका श्रम अधिनियम, अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, मोटर परिवहन कर्मचारी अधिनियम और भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम के तहत कंपनियों के पंजीकरण
एवं लाइसेंस आवंटन की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
वर्तमान में इन कानूनों के तहत कंपनियों के पंजीकरण अथवा लाइसेंस के लिए आवेदन करने के बाद मंजूरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। हालांकि मंजूरी प्रक्रिया के अनुसार, यदि किसी आवेदन को 30 दिनों के भीतर नहीं निपटाया गया तो उसे मंजूर माना जाएगा। मध्य प्रदेश के एक श्रम अधिकारी ने कहा, 'पंजीकरण अधिकारी को 30 दिनों के भीतर लाइसेंस जारी करना पड़ेगा अथवा उन्हें कारण बताना पड़ेगा। यदि ऐसा नहींं हुआ तो आवेदन को स्वत: मंजूर मान लिया जाएगा।' केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने राज्य के एक अन्य प्रस्ताव को मंजूरी दी है जिसके तहत राज्य मेंं 300 तक लोगों को नियुक्त करने वाली कंपनियों को सरकारी मंजूरी के बिना छंटनी करने अथवा कारोबार समेटने का अधिकार होगा। इसके तहत किसी इकाई को बंद करने अथवा श्रमिकों की छंटनी के लिए नोटिस की अवधि एक से तीन महीने की होगी। साथ ही मुआवजे के तौर पर कर्मचारियों को कम से कम तीन महीने का वेतन देने का प्रावधान किया गया है।
एक अन्य पहल के तहत बिल्डरों को उनके निर्माण कार्य के लिए उपकर में उल्लेखनीय कटौती की गई है। फिलहाल निर्माण कार्य के लिए बिल्डरों को भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम की धारा 3 के तहत उपकर का भुगतान करना पड़ता है। अधिकारी ने कहा, 'वर्तमान में भवन की लागत पर खुली बहस हो सकती है। इसलिए बिल्डरों अथवा उद्यमियों को अधिक उपकर का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन अब हम इस कानून के तहत कर की गणना के लिए संयंत्र एवं मशीनरी की लागत आदि को हटाना चाहते हैं।'