राकेश दुबे@प्रतिदिन। कश्मीरी पंडितों को फिर से कश्मीर घाटी में बसाने की योजना इतनी विवादास्पद है कि शायद वह फिलहाल लागू न हो पाए। हालाँकि घाटी में हालांकि आतंकवाद का प्रकोप काफी कम हो गया है, लेकिन राजनीतिक रूप से हालात सामान्य नहीं कहे जा सकते। ऐसे में, कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने की कोई भी योजना का, चाहे वह कितनी ही अच्छी हो, विवादास्पद होना तय है।
एक बार जब किसी योजना पर विवाद शुरू हो गया, तो उस पर राजनीति गरमाएगी और बजाय कम होने के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ जाएगा। सबसे व्यावहारिक बात यह है कि कश्मीरी पंडितों को बसाने की कोई सुनियोजित योजना बनाने की बजाय पहले घाटी में माहौल सामान्य करने के लिए कोशिशें की जाएं।
जब स्थितियां सामान्य होने लगेंगी, तो अपने आप सहज रूप से कश्मीरी पंडितों की वापसी मुमकिन होगी। कश्मीर के शहरों में अलग से बस्तियां बसाकर उनमें कश्मीरी पंडितों के साथ कुछ मुस्लिम परिवारों को बसाने की एक परियोजना के तहत बडगाम जिले के शेखपुरा में 200 फ्लैट बनाए गए थे। यह परियोजना वर्ष 2008 में तैयार की गई थी, जो नाकाम रही।
भाजपा ने चुनाव के दौरान पंडितों की घाटी में वापसी का वादा किया था। इसी वादे को पूरा करने के लिए यह योजना प्रस्तावित की गई है कि कश्मीर के शहरों में पंडितों के लिए अलग बस्तियां बसाकर उन्हें वापस लाया जाए। शुरू में ऐसा लग रहा था कि मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद इस योजना को आगे बढ़ाने के इच्छुक हैं, लेकिन उन्होंने इस योजना के विरोध में बयान देकर अपना रुख साफ कर दिया। कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस जब सत्ता में थीं, तब उन्होंने ऐसी एक योजना लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन वे भी इसके विरोध में हैं। कश्मीर में शायद ही कोई राजनीतिक संगठन या नेता है, जो इसके विरोध में नहीं है। इसके अलावा, इस योजना के सांप्रदायिक निहितार्थ खोजने और इसके पीछे षडय़ंत्र देखने वाले बयान जारी होने लगे हैं और घाटी में उग्र राजनीतिक तत्व सक्रिय होने लगे हैं। अगर इस योजना की चर्चा से ही इतना बवाल हो सकता है, तो इसके शुरू होने से कितना होगा?
इन अलग-थलग बस्तियों पर आतंकवादियों की नजर तो रहेगी ही, कश्मीरी पंडित जब अपनी बस्ती के बाहर किसी भी कारण से निकलेंगे, तो विशेष रूप से खतरे की स्थिति में होंगे। भाजपा और पीडीपी की सरकार बनने से कश्मीर घाटी में एक नई शुरुआत हुई है। यह गठबंधन बहुत सहज नहीं है, क्योंकि भाजपा कश्मीर के मामलों पर एक किस्म का सख्त रुख रखने वाली पार्टी है, तो पीडीपी उसके उलट किस्म का सख्त रुख रखती है। इन दो ध्रुवों की पार्टियों का गठबंधन चलाना आसान नहीं है, लेकिन इसकी वजह से यह गठबंधन एक नई संभावना का भी संकेत देता है। यह चल गया, तो उग्र राष्ट्रवादियों और अलगाववादियों को यह अप्रासंगिक बना देगा|
