राकेश दुबे@प्रतिदिन। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा फिर पाकिस्तान का भारत के खिलाफ उपयोग से अधिक नहीं रही। चीन के लिए पाकिस्तान का सबसे बड़ा इस्तेमाल यह है कि पाकिस्तान, चीन के पड़ोसी और कई क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वी भारत को उलझाए रखता है। यह सिलसिला 1965 से जारी है। भारत-पाक युद्ध में मुश्किल में फंस जाने के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान मदद मांगने चीन गए थे, तब चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने इस शर्त पर पाकिस्तान की लगातार मदद करने का आश्वासन दिया था कि पाकिस्तान किसी भी सूरत में भारत से युद्ध विराम नहीं करेगा।
चीन और पाकिस्तान के रिश्ते इसी बुनियाद पर टिके हुए हैं कि पाकिस्तान, भारत के खिलाफ लगातार मोर्चा खोले रहे। पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम भी चीन की मदद से ही चला है और तमाम पाकिस्तानी मिसाइलें भी चीन की ही देन हैं। ऐसे में, चीन द्वारा पाकिस्तान को आठ पनडुब्बियां देने का समझौता भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा है। वर्तमान परिस्थिति में भारत को इस यथार्थ के साथ समझौता करना ही पड़ेगा।
पाकिस्तान इस दोस्ती को कितना ही पवित्र और भाव पूर्ण कहे, लेकिन चीन की तरफ से ऐसी भावुकता नहीं दिखती। यह भी सच है कि यह दोस्ती काफी असहज है, क्योंकि यह असमान देशों की दोस्ती है। पाकिस्तान काफी पहले शी जिनपिंग को बुलाना चाहता था, लेकिन चीन ने उसकी आतुरता को खास महत्व नहीं दिया। वह पाकिस्तान दौरे के काफी पहले भारत आ चुके हैं, और अगले महीने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के दौरे पर जाने वाले हैं।
चीन भले ही भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करे, लेकिन वह भारत से अपने रिश्तों, खासकर आर्थिक रिश्ते को बहुत महत्वपूर्ण मानता है। चीन और पाकिस्तान के बीच 46 अरब डॉलर के आर्थिक समझौतों की बात हुई है और पाकिस्तान की जर्जर अर्थव्यवस्था के लिए यह काफी बड़ी राहत हो सकती है। इन आर्थिक समझौतों में आधे से ज्यादा उस आर्थिक और ऊर्जा कॉरिडोर के लिए है, जो कि पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से चीन तक बनेगा।
इससे सड़क, रेलवे व पाइप लाइन के जरिये चीन खनिज तेल और अन्य सामग्री सीधे चीन तक ले जा सकेगा, यानी हिंद महासागर में उसे सीधे प्रवेश मिल जाएगा। पाकिस्तान इसके लिए ग्वादर बंदरगाह को 40 साल के लिए चीन को लीज पर देगा। भारत के लिए सामरिक नजरिये से यह आशंका की बात है।
वैसे भी चीन और पाकिस्तान के सहयोग में काफी सारी उलझनें भी हैं। जितने निवेश की बात हुई है, उनमें से कितना सचमुच हो पाता है, यह देखना होगा। जिस कॉरिडोर की बात हो रही है, वह बलूचिस्तान से गुजरेगा और चीन उसकी सुरक्षा को लेकर आशंकित है। पाकिस्तान ने इस कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए 12000 लोगों का एक सुरक्षा बल बनाने की बात की है, पर पाकिस्तान में चीनी नागरिकों और संपत्ति की सुरक्षा को लेकर सवाल तो बने ही रहेंगे। जिस निवेश की बात हो रही है, उसका ज्यादा बड़ा हिस्सा तो चीनी फायदे के लिए ही है। चीन को पाकिस्तान से फैलने वाले आतंकवाद की आंच भी लग रही है। वहां के मुस्लिम बहुल प्रांत उइगुर में अशांति फैलाने वाले लोगों के पाकिस्तान और अफगानिस्तान के आतंकी गुटों से संबंध हैं। इसलिए चीन डरा हुआ है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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