अतिथि शिक्षक: गांव बसा नहीं, लुटेरे पहले आ गए

रतीराम श्रीवास। टीकमगढ जिले के अतिथि शिक्षकों ने जब सेंट्रल इंडिया के नम्बर वन न्यूज पोर्टल भोपाल समाचार डाॅट काॅम पर अपने शुभचिंतक युवा साथी की प्रतिक्रिया पढ़ी तो सभी हैरत मे पड गये कि आखिर हमारे साथी क्यो इतने खुन्नस में हैं।

प्रदेश सरकार की खामियों का हिसाब बेरोजगार अतिथि शिक्षकों से क्यों ले रहा है। अगर अतिथि शिक्षकों की चयन प्रक्रिया मनमाने तरीके से अपनायी गई है और भाई भतीजा को अतिथि शिक्षक बनाया गया है तो हमारे जागरूक साथी ने यह नही बताया की भाई भतीजा शाला प्रबंधन समिति से बना है कि अन्य फैमिली से अतिथि शिक्षक बने हैं। अगर श्रीमान की नजर मे यह सब गलत हो रहा है तो अपने क्षेत्र का संपूर्ण अभिलेख लेकर अतिथि शिक्षकों को बोनस अंक मिलने का बिरोध न करके अभिलेख साहित न्यालय मे पेश होते तो स्वागत योग्य पहल थी।

उन्हे दण्ड दिलावाते जो अन्याय किया जा रहा है। बेरोजगारों को न्याय दिलवाते। अतिथि शिक्षकों को नियमित करने की माॅग उठाते। उन्होने यह पहल करके इस कहावत को साबित कर दिया कि घर का भेदी लंका ढाये। क्याोकि भ्रष्टाचार वही चापलूस करते हैं जिनकी सत्ता मे पंहुच होती है।

जहां तक सबाल आया है संपादक महोदय जी की सहमति अनिवार्य नही है तो भारतीय संविधान के चौथे स्तंभ के कलम के पुजारी हमेशा पक्ष पात से हटकर निष्पक्ष होकर जनता/पीड़ित वर्ग की आवाज उठाते हैं और उन्हे जब तक न्याय नही मिल जाता अपनी कलम बंद नही करते।

आइये हम अपने जागरूक शुभचितंक को अतिथि शिक्षक की चयन प्रक्रिया से अवगत कराते हैं।
सत्र प्रारंभ होने से पहले गतवर्षों से राज्य शिक्षा केन्द्र दिशा निर्देश जारी करता आ रहा है। वर्ग 1 वर्ग 2 वर्ग 3 के अतिथि शिक्षकों की व्यवस्था करके शिक्षक कार्य संपन्न कराया जाये। जिन शालाओं मे शिक्षकों का अभाव है पहले योग्य आवेदको से आवेदन फार्म लिये जाये। जिनके पास डीएड बीएड धारी है सबसे पहले प्राथमिकता डिग्रीधारी को दी जाये एवं फार्म की मैरिट बनाकर सबसे अधिक अंक बाले का चयन किया जाये।

जिस शाला मे शाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष सचिव हैं उस शाला मे एसएमसी समिति के अध्यक्ष सचिव अपने फैमिली के व्यक्ति को अतिथि शिक्षक नही बना सकते। अगर ऐसा पाया जाता है कि शाला प्रबंधन समिति ने अपना सदस्य अतिथि शिक्षक बनाया है तो एसएमसी पर वैधानिक कार्रवाई होगी अगर किसी जागरूक के क्षेत्र भ्रष्टचार पाया जाता है तो विधिवत कार्रवाई करें। कानून से बढ़कर कोई नहीं है।

जरूरी यह है कि अतिथि शिक्षकों के चयन में यदि कोई गड़बड़ी है तो उसे उजागर करें, खामी को ठीक करें। सिस्टम को बदलने की मांग करना उचित नहीं है। अतिथि शिक्षकों का दर्द केवल वही जानते हैं। बोनस अंक अतिथि शिक्षकों के जख्मों पर मरहम भी नहीं हो सकते। हमें नियमितिकरण चाहिए, बिना किसी परीक्षा है। हमारा अनुभव ही इतना है कि हम किसी भी अव्यवहारिक परीक्षा के बिना स्कूलों का सफल संचालन कर सकते हैं। याद रखिए, सरकारी स्कूलों में यदि कहीं टॉपर्स निकल रहे हैं तो यह अतिथि शिक्षकों का ही प्रताप है। रिश्वतखोरी से भर्ती हुए कर्मचारी परिश्रमी और परिणामी नहीं होते।

पढ़िए वो खुलाखत जिसके जवाब में यह खत लिखा गया।

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