बिना ठोस एक्ट के प्राइवेट स्कूलों नहीं मानेंगे

भोपाल। मप्र में प्राइवेट स्कूलों ने बेतहाशा फीस बढ़ा दी है। तमाम अभियान चलाने के बावजूद स्कूलों पर कंट्रोल नहीं हो पा रहा है। अब तो कई कलेक्टरों का कहना है कि किसी ठोस एक्ट के बिना वे भी कुछ नहीं कर सकते।

इधर, किताबों और ड्रेसेज में भी कमीशनबाजी के कारण पैरेंट्स परेशान हो रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि कॉलेज से एमबीए या बीई जैसे कोर्स करने पर जितनी फीस लग रही है, उतना या उससे ज्यादा पैसा कक्षा तीसरी, चौथी की पढ़ाई पर लग रहा है। स्कूल प्रशासन की नजरें पैंरेंट्स की जेब पर गड़ी हुई हैं।

किताबों की बिक्री में स्कूलों और दुकानदारों की मिलीभगत सामने आने के बाद अब यह बात भी सामने आ रही है कि ट्यूशन फीस, किताबें, ड्रेसेज, स्कूल बस और अन्य तरह की एक्टिविटीज के लिए ली जाने वाली फीस में भी बड़ा अंतर है। हैरत की बात तो ये कि स्कूलों के इस गठजोड़ को लेकर प्रशासन भी कार्रवाई कर पाने में बेबस है। जब कलेक्टर ही बेबस है तो फिर स्कूलों और किताब विक्रेताओं के गठजोड़ को आखिर कौन तोड़ेगा? क्या स्कूलों की मनमानी इसी तरह चलती रहेगी? इस मुद्दे पर जब पैरेंट्स से बात की तो अधिकांश ने बताया कि अब अनिवार्य रूप से हर साल फीस में बढ़ोतरी हो रही है। पैरेंट्स जब दुकानों पर पहुंचते हैं तब उन्हें पता चलता है कि उनका बच्चा पढ़ाई में तो एक ही क्लास आगे बढ़ा है, मगर एक साल में उसकी पढ़ाई का खर्च कई गुना ज्यादा हो गया है।

पांचवीं की फीस MBA से ज्यादा
स्कूलों में क्लास फस्र्ट से चौथी तक की फीस तीस-चालीस हजार रुपए ली जा रही है। नई क्लास में जाने पर पांच हजार रुपए तक की किताबें, दो हजार तक की ड्रेसेज लेनी पड़ रही हैं। कई स्कूल्स 40 हजार ट्यूशन और पांच हजार रुपए बस फीस ले रहे हैं। क्लास फोर्थ के बाद कई स्कूल 40-50 हजार रुपए ट्यूशन फीस ले रहे हैं। हैरत की बात ये है कि कई स्कूलों की फीस कॉलेजों से भी ज्यादा है। बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई)और मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्टे्रशन (एमबीए) डिग्री की बात की जाए तो शहर के कॉलेज 22 हजार से 30 हजार रुपए सेमेस्टर फीस ले रहे हैं यानि हर साल 44 से 60 हजार रुपए फीस। किताबें, ड्रेसेस और अन्य खर्च भी जोड़ लिए जाए तो 10 हजार रुपए में इसकी पूर्ति हो जाती है। ऐसे में कुछ स्कूलों में पांचवीं, छठी कक्षा की फीस एमबीए की फीस से ज्यादा है।

...जबकि कॉलेज से कम होता है स्कूलों का खर्च
स्कूलों में कॉलेजों के मुकाबले कम संसाधन होते हैं। कॉलेज में बड़ा कैम्पस,ज्यादा तनख्वाह वाले प्रोफेसर्स, कम्प्यूटर व अन्य लैब, एक्साम, रिजल्ट जैसे काम होते हैं। इनमें ज्यादा पैसा खर्च होता है। इसके बावजूद  टेक्निकल और प्रोफेशनल कॉलेजों से ज्यादा फीस स्कूलों में लगना बड़ा अजीब है। प्रदेश के टैक्निकल और मैनेजमेंट कॉलेजों की फीस की मॉनिटरिंग करने और उन पर लगाम लगाने के लिए फीस रेगुलेरिटी कमेटी है। इसके तहत इंजीनियरिंग और एमबीए की सेमेस्टर फीस फिक्स की गई है, यानि सालभर में फीस तय नहीं होने से साल की फीस 40 से 60 हजार तक ली जा सकती है।

स्कूल में लगती है दुकान
स्कूल का सेशन शुरू होने से पहले ही स्कूल संचालक अपने  परिसर में ही किताबों-कॉपियों की दुकान लगवा देते हंै, जहांं वे मनमर्जी की दरों पर किताबों एवं कॉपियों के अलावा स्टेशनरी उत्पाद की बिक्री भी करते हंै, कई अभिभावकों के विरोध के बावजूद यह दुकानदारी चालू है। दरों के अधिक होने का विरोध होने पर दुकानदार स्कूल प्रशासन पर जिम्मेदारी डालते हंै। एक पैरेंट्स ने बताया कि जोधपुर के ख्यातनाम डीपीएस स्कूल में एक साधारण नोटबुक जो बाजार में आसानी से 20 रुपए में उपलब्ध हो जाती है, उसके 100 रुपए से भी अधिक वसूले जा रहे हंै, इसका विरोध करने पर दुकानदार किसी प्रकार की सुनवायी भी नहीं करता, वहीं बिल भी मांगने पर दिया जाता है, जिसमें किसी प्रकार के कॉपी किताब एवं स्टेशनरी और उनकी दरों का उल्लेख नहीं होता। दुकानदार बताते हंै कि किसी भी कॉपी-किताब की दर निर्धारित नहीं है, सबका एकमुश्त मूल्य ही निर्धारित किया गया है।

ईंधन की कीमतें घटीं, बसों का किराया बढ़ा
कमोबेश हर स्कूल ने इस बार भी बसों का किराया 10 से 25 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है जबकि पिछले एक वर्ष के दौरान ईंधन की कीमतें लगातार घटी हैं। डीपीएस के ट्रांसपोर्ट अधिकारी जयन्त से दरों के बढऩे का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि यह तो हर साल बढ़ती है। बस में निर्धारित संख्या से अधिक बच्चे बैठाने के सवाल पर उन्होंने इसका दोष भी अभिभावकों को ही दिया कि अभिभावक पूरा किराया नहीं देते, इसलिये बसों में निर्धारित संख्या से अधिक बच्चों को बैठाया जाता है।

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