सोचिए तो सही, जरूरत क्या थी परशुराम की ?

उपदेश अवस्थी। आज परशुराम जयंती है। लोग कहते हैं ब्राह्मणों का दिन है, मैं कहता हूं, यह किसी जाति या धर्म विशेष का दिन नहीं है। देशप्रेम का दिन है। देशप्रेम का इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता। 

साधू तो आकार देते हैं, संहार नहीं करते, फिर ऐसा क्यों कि एक तपस्वी साधू का पुत्र संहार को निकल पड़ा। ये तो सब जानते हैं कि उन्होंने धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, परंतु 'क्षत्रिय' से तात्पर्य क्या था। कारण क्या था जो वो शास्त्र नहीं शस्त्र उठाकर निकल पड़े। 

वो विद्धान थे, संस्कारी थे, फिर ऐसा क्या हुआ जो उन्हे संहार करना पड़ा। मेरी दृष्टि में यह दुनिया का अकेला ऐसा उदाहरण है जब राजा और प्रजा के बीच इतनी बड़ी खाई थी। राजा अपनी प्रजा पर ध्यान ही नहीं देता था। समाज में सिर्फ दो वर्ग थे, शासक और शोषित। निर्धन अपनी आवाज नहीं उठा सकते थे, उन्हे संगठित नहीं किया जा सकता था। अधर्मी और अन्यायी शासकों को रोकने का कोई विकल्प ही शेष नहीं था। इसलिए परशुराम ने शस्त्र उठाए। यहां अधर्मी से तात्पर्य धर्म को ना मानने वाला नहीं, बल्कि राजा के धर्म का पालन ना करने वाला से है। परशुराम को समझने में दुनिया को शायद अभी और वक्त लगेगा।

कुछ प्रमुख पंक्तियां
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। वे सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे।

उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है नाकि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना।

यह भी ज्ञात है कि परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीँ (वह शिक्षा जो ८ वर्ष से कम आयु वाले बालको को दी जाती है)। वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँख्वार वनैले पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।


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