पढ़िए अफसरशाही से पीड़ित मुख्यमंत्री का दर्द

भोपाल। सिविल सर्विस-डे के मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दर्द ​निकलकर सामने आ ही गया। वो बातों बातों में बता गए कि क्या मंत्री और क्या मुख्यमंत्री, अफसरशाही अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती। वो बस मनमानी किया करती है। उन्होंने अफसरों को घमंडी भी कहा। 

उनके भाषण में नसीहतें भी थीं। समझाइश भी। पढ़िए किन पांच बिंदुओं पर उन्होंने क्या कहा?

गौर से सुन रहे थे अफसर
मंच पर मुख्य सचिव अंटोनी डिसा, प्रशासनिक अकादमी के महानिदेशक इंद्रनील शंकर दाणी, प्रमुख सचिव के सुरेश, डीजीपी सुरेंद्र सिंह, पीसीसीएफ अनिल ओबेराय, अकाउंटेंट जनरल दीपक कपूर बैठे थे। हॉल में 70 आईएएस अफसर, 18 आईपीएस अफसर और 20 आईएफएस अफसर मौजूद थे। इसके अलावा राज्य प्रशासनिक सेवा, राज्य पुलिस सेवा, राज्य वन सेवा आदि के भी अफसर गौर से सुन रहे थे।

सरकार को टेंप्रेरी समझते हैं अफसर
अफसरों की सोच यह रहती है कि एक बार नौकरी में आ गए तो किसकी मजाल की रिटायरमेंट तक कोई नौकरी से हटा सके। वे सरकार को टेम्प्रेरी व स्वयं को परमानेंट समझते हैं। सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। अफसरों की सोच देश हित में होगी तो सरकार के आने-जाने का कोई अंतर नहीं पड़ेगा। अफसरों को इस सोच को बदलना पड़ेगा।

घमंडी हो जाते हैं 
आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसर नौकरी में अहंकार को आड़े न आने दें। कई बार अफसरों को सर्विस का अहंकार हो जाता है। आईएएस अफसर समझते हैं कि हमसे अच्छा कौन तो आईपीएस अफसरों की सोच रहती है कि हम भी आईएएस से कम नहीं है। वहीं, आईएफएस अफसर अलग दिशा में सोचते हैं। मैं मानता हूं कि सभी जनता के लिए काम कर रहे हैं।

मैं भी शिकार हुआ
मैं जब मुख्यमंत्री बना तो कन्या विवाह का आइडिया आया। उस दौरान अफसरों ने उनकी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि कन्या विवाह करना क्या सरकार का काम है? इस पर मैंने कहा कि कन्या विवाह तो होकर रहेंगे। लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू करने में तत्कालीन वित्तमंत्री और प्रमुख सचिव ने कहा कि यह योजना शुरू हुई तो खजाना खाली हो जाएगा, लेकिन मैंने एक न मानी।

फाइल रोकना भी एक अपराध
किसी योजना की चार महीने बाद जब समीक्षा करता हूं तो पता चलता है कि कोई प्रगति नहीं। फाइल वहीं रुकी है, जहां पहले थी। फाइल रोकना भी एक अपराध है। अफसर सोचते हैं कि कहीं मेरे सिग्नेचर न हो जाएं जिससे जांच में फंस जाऊं। किसी अफसर से मिलना हो तो भृत्य के माध्यम से पर्ची भेजो तो वह उसे संबंधित तक नहीं पहुंचाएगा।

मुझे बताया ही नहीं
आज सुबह अखबार में पढ़कर पता चला कि मुझसे मिलने अतिथि विद्वान आए थे। उन्हें जेल भेज दिया गया। मुझे बताया ही नहीं गया कि कोई मिलना चाहता है। मन में तो आया कि जेल चला जाऊं और उनसे वहीं जाकर मिलूं। ऐसे मामलों में अफसरों को संवेदनशील होने की जरूरत है। जनता में बहुत गलत संदेश जाता है।

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