RTO भर्ती घोटाला: पढ़िए कांग्रेस का बयान जो STF ने दर्ज किया

भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने आज एसटीएफ मुख्यालय के आग्रह पर वहां पहुंच परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 में फर्जी, कूटरचित दस्तावेजों और भ्रष्टाचार के बाद हुई नियुक्तियों को लेकर अपने लिखित कथन एसटीएफ, उप पुलिस अधीक्षक, ए.एस. कनेश को दर्ज कराये।

एसटीएफ ने गत् 27 सितम्बर 2014 को एसटीएफ कार्यालय पहुंचकर परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 को लेकर एफआईआर दर्ज कराने की मांग करने वाले मिश्रा के अतिरिक्त उपाध्यक्ष मानक अग्रवाल, महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी, मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा, प्रवक्ता विभा पटेल और संगीता शर्मा को अपने कथन हेतु दो बार बुलाया गया था, किंतु निकाय चुनाव की व्यस्तता के कारण पहुंच नहीं सके थे। लिहाजा, मिश्रा ने इन नेताओं के भी संयुक्त हस्ताक्षर युक्त लिखित कथन सौंपे हैं।

पढ़िए कांग्रेस का पूरा बयान जो दर्ज किया गया

प्रतिष्ठा में,
श्री ए.एस. कनेश जी
उप पुलिस अधीक्षक
एसटीएफ, म.प्र., भोपाल।

विषय: आपके पत्र क्र. समनि-2/एसटीएफ/उपुअ (एएसके)/अप-18/2014-(281),
भोपाल दिनांक 17/03/2015 के संदर्भ में।

मान्यवर,
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक प्रतिनिधि मंडल ने गत् दिनांक 27 सितम्बर 2014, को एसटीएफ मुख्यालय, भोपाल में उपस्थित होकर माननीय एडीजी, एसटीएफ के नाम संबोधित एक ज्ञापन सौंपकर व्यापम के माध्यम से चयनित परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 में हुई गड़बड़ियों, फर्जी व कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से चयनित आरक्षकों को लेकर एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। जिसके बाद दबाववश एसटीएफ ने उक्त भर्ती परीक्षा को लेकर न केवल एफआईआर दर्ज की, बल्कि 38 लोगों को इसमें आरोपी नामित भी किया है, इस संबंध में आपके द्वारा हमें दिनांक 18/11/2014 और 06/01/2015 को कथन देने हेतु उपस्थिति के लिए नोटिस दिया गया था, किंतु चुनावी व्यवस्थाओं के कारण यह संभव न हो सका। उक्त संदर्भित सूचना जिसके अंतर्गत आज दिनांक 24 मार्च 2015 को दोपहर 12 बजे एसटीएफ मुख्यालय, जहांगीराबाद, भोपाल में उपस्थित रहने हेतु कहा गया है, क्योंकि हम अधोहस्ताक्षकर्ताओं ने माननीय एडीजी, एसटीएफ के समक्ष ज्ञापन सौंपकर उक्त परीक्षा को लेकर एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। लिहाजा, ऐसी मांग करने वाले पार्टी नेताओं को कथन हेतु आमंत्रित करना औचित्यहीन प्रतीत होता है, किंतु उसके बावजूद भी सरकार के नियंत्रण में कार्य कर रही जांच एजेंसी एसटीएफ से निष्पक्ष जांच प्रक्रिया के व्यापक हितों में हमारी निम्नांकित आपत्तियों को ही आप कृपापूर्वक कथन के रूप में ही स्वीकार करें:-

1. व्यापम द्वारा विगत् 7 वर्षों में विभिन्न श्रेणी के पदों हेतु भर्ती एवं व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश हेतु कुल 168 परीक्षाएं आयोजित की गईं, जिनमें 1 लाख 47 हजार परीक्षार्थियों ने हिस्सा लिया। शासकीय विभागांे और उपक्रमांे के अलावा लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं इसमें शामिल नहीं हैं।

2. घोटाला उजागर होने के बाद भोपाल के महाराणा प्रताप नगर पुलिस स्टेशन में 19 जुलाई, 2009 को पहली एफआईआर दर्ज करायी गई। एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद 31 मार्च, 2011 को प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चैहान ने विधानसभा सत्र के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि फर्जी अभ्यार्थियों की पहचान नहीं हुई है। 15 जनवरी, 2014 को मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह स्वीकारा कि व्यापम द्वारा आयोजित परीक्षाओं में 1 लाख 47 हजार परीक्षार्थी बैठे थे, उनमें 1 हजार फर्जी पाये गये हैं। इस लिहाज से प्रदेश के मुखिया यदि सदन में 1 हजार परीक्षार्थियों के फर्जी होने की बात स्वीकार कर रहे हैं तो इन सभी के खिलाफ एसटीएफ द्वारा एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई?

3. हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार व्यापम महाघोटाले को लेकर 55 एफआईआर दर्ज हैं और अभी भी 587 आरोपी फरार हैं, उनके गिरफ्तारियां एसटीएफ द्वारा क्यों नहीं की जा रही हैं?

4. एसटीएफ की स्टाइल ‘पिक एंड चूज़’ वाली है। इस महाघोटाले को लेकर दर्ज एफआईआर, सीडीआर और उपलब्ध रिकार्ड में केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती का नाम 17 प्रकरणों में, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ कार्यवाह श्री सुरेश सोनी जिन्हें अब इस पद से हटा दिया गया है, व्यापम की पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ आईएएस रंजना चैधरी, जिन्हें लेकर जेल में बंद व्यापम के कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी से एसटीएफ को दिये गये अपने बयान में स्वीकारा है कि उन्होंने रंजना चैधरी को 70 लाख रूपये दिये हैं, से आज तक पूछताछ क्यों नहीं की गई? अतः इन्हें भी इस महाघोटाले में न केवल पूछताछ के लिए बुलाया जाए, बल्कि आरोपितों में भी शामिल किया जाये।

5. मुख्य मंत्री के प्रमुख सचिव एवं आयुक्त जनसंपर्क श्री एस.के. मिश्रा जिनके मोबाइल नंबर 94251 85550 से जेल में बंद व्यापम घोटाले के बड़े सरगना सुधीर शर्मा से हुई चर्चाओं का ब्यौरा भी सामने आया है। उनसे भी आज तक एसटीएफ द्वारा पूछताछ क्यों नहीं की गई। श्री मिश्रा, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव की हैसियत से कार्यरत हैं और व्यापम के आरोपी से उनके संबंधों, काॅल डिटेल व उसके लोकेशन की जांच न होना व उनसे पूछताछ न करना एक बड़े संदेह को जन्म दे रहा है? चूंकि श्री एस.के. मिश्रा मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एवं आयुक्त जनसंपर्क जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर काबीज हैं और यही कारण है कि उनसे एसटीएफ प्रामाणिक दस्तावेजों की उपलब्धता के बावजूद भी दबाववश पूछताछ तक नहीं कर रही है। इस बिंदु को भी जांच प्रक्रिया में शामिल किया जाए।  
इसी प्रकार महाघोटाले में शामिल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के ओएसडी धनराज यादव, मुख्यमंत्री के निज सचिव प्रेमप्रसाद और जन अभियान परिषद के अध्यक्ष अजय शंकर मेहता को अग्रिम जमानत/जमानत कैसे मिल गई। एसटीएफ ने न्यायालय के समक्ष जमानत का विरोध क्यों नहीं किया? इसी प्रकार अजय शंकर मेहता के विरूद्व दूसरी एफआईआर में भी नाम आ गया है, उनकी इस एफआईआर को लेकर गिरफ्तारी कब होगी?

6. नियमानुसार किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के दस्तावेज 10 वर्षों तक रखना जरूरी है। व्यापम में 2008 तक के दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग में 10 वर्ष तक उत्तर पुस्तिकाएं तथा 20 वर्षों तक रिजल्ट के रिकार्ड रखे जाते हैं। व्यापम में भी यही व्यवस्था लागू है। फिर व्यापम द्वारा निर्धारित अवधि के पूर्व दस्तावेज नष्ट कैसे कर दिये गये। 22 जनवरी 2014 को एसटीएफ ने माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में दाखिल अपने हलफनामें में माननीय न्यायालय को इस बाबत जानकारी दी है। लिहाजा, सबूत नष्ट करने वाले दोषियों के विरूद्व एसटीएफ ने अब तक एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की?

7. न्यायालय में प्रस्तुत आरोप पत्र (एफआईआर 30.10.2013, मेमो. 7.11.2013, पेज नं. 33) में जेल में बंद आरोपी व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और व्यापम के चीफ सिस्टम एनाॅलिस्ट नितिन महेन्द्रा का वक्तव्य है कि ‘‘परीक्षा के पूर्व से समय समय पर प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव आते रहे तथा पीएमटी 2012 में भी उन लोगों को चयनित कराने हेतु दबाव बनाया गया, जिनके अत्याधिक दबाव के कारण मैंने कम्प्यूटर शाखा के प्रभारी नितिन महेन्द्रा एवं चंद्रकांत मिश्रा से चर्चा कर अभ्यार्थियों को पास कराने हेतु योजना तैयार की।’’ मेरा आग्रह है कि एफआईआर में दर्ज इस महत्वपूर्ण साक्ष्य के आधार पर एसटीएफ ने जांच प्रक्रिया में उन प्रभावशाली व्यक्तियों को जो पीएमटी-2012 परीक्षा में अयोग्य व्यक्तियों के चयन हेतु दबाव बना रहे थे, उनके नामों का अनुसंधान क्यों नहीं किया?
हमारी जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री निवास से पंकज त्रिवेदी व नितिन महेन्द्रा को किये गये 139 काॅलों की जानकारी व रिकार्ड एसटीएफ के पास मौजूद है, जिसे वह सार्वजनिक नहीं कर रही है। लिहाजा, एसआईटी से हमारा निवेदन है कि पंकज त्रिवेदी और नितिन महेन्द्रा के काॅल डिटेल्स और उनके लोकेशन की जांच करायी जाये। जिससे मुख्यमंत्री निवास की संलिप्तता सामने आ सके।

8. मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा 27 मार्च, 2014 के पहले बीएसएनएल का मोबाइल नंबर 94256 09855 उपयोग में लाया जा रहा था। बीएसएनएल की योजना के तहत उनके द्वारा उपयोग में लाये जा रहे इस मोबाइल सिम के साथ एक अन्य एडआॅन ।क्क्व्छ सिम नंबर 94256 09866 आवंटित थी, जिसका उपयोग उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधनासिंह करती थीं। श्रीमती सिंह के नंबर से भी व्यापम घोटाले के आरोपियों को कई काॅल किये गये हैं। लिहाजा, इस नंबर एवं एक अन्य प्रायवेट नंबर से किये गये काॅलों की डिटेल्स व उनका लोकेशन जांच की परिधि मंे शामिल किया जाये। व्यापम घोटाला उजागर होने के बाद 27 मार्च, 2014 को अचानक इन दोनों मोबाइल सिमों को बंद क्यों कर दिया गया? इसकी भी जांच हो।

9. यहां सबसे महत्वपूर्ण और चैंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि व्यापम द्वारा आयोजित परीक्षाओं में परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 भी आयोजित की गई थी। इस परीक्षा में परिवहन आरक्षकों की सीधी भर्ती हेतु व्यापम/राज्य सरकार द्वारा प्रसारित किये गये विज्ञापन में 198 परिवहन आरक्षकों की भर्ती करने हेतु अधिसूचना मई 2012 में समाचार पत्रों में प्रकाशित करायी गई थी।

अधिसूचना के बिन्दु क्रमांक 15 में उल्लेखित आरक्षण तालिका:-
स.क्र. श्रेणी ओपन महिला भूतपूर्व सैनिक योग
1. अनारक्षित 59 29 10 98
2. अनुसूचित जाति 19 10 03 32
3. अनुसूचित जनजाति 24 12 04 40
4. अन्य पिछड़ा वर्ग 17 08 03 28
महायोग 119 59 20 198

विडंबना है कि बिना किसी सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति लिये बगैर अवैधानिक तरीके से 332 परिवहन आरक्षकों का चयन कर लिया गया। 23 जून, 2014 को परिवहन मंत्री श्री भूपेन्द्रसिंह द्वारा एक पत्रकार वार्ता में 316 परिवहन आरक्षकों के चयन की अहस्ताक्षरित सूची जारी की गई। इसी दिन यानी 23 जून, 2014 को ही प्रमुख सचिव, परिवहन, प्रमोद अग्रवाल ने जारी अपनी नोटशीट में बिंदु क्रमांक तीन पर 316 परिवहन आरक्षकों की भर्ती वर्ष 2013-14 में की गई होना बताया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि इन परिवहन आरक्षकों में कोई भी महाराष्ट्र का नहीं है। यहां यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि परिवहन आरक्षक परीक्षा 2013-14 में हुईं ही नहीं है?

यहां यह भी उल्लेख किया जाना प्रासंगिक है कि म.प्र. सरकार द्वारा माननीय उच्च न्यायालय, जबलपुर को एक हलफनामा दाखिल किया गया है, जिसमें 313 परिवहन आरक्षकों का चयन और 17 चयनित आरक्षकों द्वारा अपनी ज्वाइनिंग रिपोर्ट परिवहन विभाग को नहीं दिये जाने की बात स्वीकारी गई है। इन तीनों ही विसंगतियों में सच्चाई क्या है? सरकार के ही दस्तावेजों और आंकड़ों में अंतर क्यों है?

परिवहन आरक्षकों की भर्ती की अधिसूचना जब 198 पदों को लेकर थी, तब 332 परिवहन आरक्षक चयनित कैसे, किसकी अनुमति से और किस वैधानिक प्रक्रिया को अपनाने के बाद चयन किये गये। इसका दोषी कौन है ? एसटीएफ ने अपनी जांच प्रक्रिया मंे इस बहुत बड़ी घटना / धोखे को शामिल कर दोषियों के विरूद्व प्रकरण दर्ज क्यों नहीं किया?

10. परिवहन आरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में तत्कालीन परिवहन मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने चयनित परिवहन आरक्षकों को राहत प्रदान करने हेतु उनके फिजीकल टेस्ट भी न कराये जाये, इस बावत एक सरकारी पत्र भी जारी किया था, जो दस्तावेजों में उपलब्ध है। इस पत्र के आधार पर तत्कालीन परिवहन मंत्री से भी पूछताछ क्यों नहीं की जा रही है? जबकि नियमानुसार पुलिस भर्ती सेवाओं में ऐसे टेस्ट अनिवार्य हैं।  

11. परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले में तत्कालीन परिवहन मंत्री श्री जगदीश देवड़ा, 2 वरिष्ठ आईपीएस, तत्कालीन परिवहन आयुक्त श्री एसएस लाल, अतिरिक्त परिवहन आयुक्त और मुख्यमंत्री के रिश्तेदार श्री आर.के. चैधरी एवं तत्कालीन परिवहन मंत्री श्री देवड़ा के पीए दिलीपराज द्विवेदी जिनका मोबाइल नं. 9425600741 था, उसकी भी काॅल डिटेल्स लोकेशन की जांच करायी जाए, क्योंकि इन सभी की भूमिकाएं न केवल संदिग्ध है, बल्कि स्पष्ट तौर पर प्रामाणित भी है, बावजूद उसके एसटीएफ द्वारा उन्हें अब तक आरोपी क्यों नहीं बनाया गया है ?

12. व्यापम द्वारा आयोजित पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 में जो पुलिस आरक्षक नाॅटसिलेक्ट कर दिये थे, उन्हें संलग्न दस्तावेज के अनुसार विभिन्न स्थानों/जिलों में नियुक्तियां दे दी गईं और वे अभी भी कार्यरत हैं। इतनी बड़ी गंभीर चूक/दुराचरण किस ईमानदारीपूर्ण नीति-नियत के तहत की गई है? इसके दोषियों के विरूद्व एसटीएफ ने अब तक क्या कार्यवाही की है?

13. माननीय उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ ने वर्ष 2012 मंे संपन्न परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा को रद्द करने हेतु 27 जनवरी, 2014 को आदेश पारित किये, वरन अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने ट्रांसपोर्ट सेवा भर्ती नियम-2011 के उस नियम को भी रद्द कर दिया है, जिसमें पुरूष और महिला आरक्षकों के पदों के लिए समान योग्यता रखी गई थी। नियमविरूद्व कार्य करने के इस गंभीर दुराचरण को लेकर जबावदेही किसकी थी, एसटीएफ ने उन्हंे तलब क्यों नहीं किया?

14. व्यापम महाघोटाले से संबध कई एफआईआर में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 (पीसीआर एक्ट) के तहत प्रकरण दर्ज नहीं किये गये है। जबकि इस पूरे महाघोटाले में भ्रष्टाचार के माध्यम से बड़ी धनराशि का लेन-देन हुआ है, उसके बावजूद भी कई मामलों में पीसीआर एक्ट का उपयोग नहीं किया गया है और न ही अरबों रूपयों के इस घोटाले में स्पष्ट प्रमाण सामने आने के बावजूद भी एसटीएफ द्वारा धनराशि जब्त नहीं की गई है। यदि जब्त भी की गई हो तो वह ऊंट के मुंह में जीरा है। यह कमजोर प्रक्रिया किसके इशारे पर और किसे लाभ पहुंचाने के लिए की जा रही है?

15. नियम बदलकर शातिर तरीके से खेला गया भ्रष्टाचार का खेल:- व्यापम महाघोटाले की व्यापकता के बारे में पीएमटी, पीईटी व कई विभागों में भर्ती परीक्षाएं व्यापम के माध्यम से होती आई हैं। वर्ष 2004 में इनके नियमों में जबरिया परिवर्तन किया गया। कम्प्यूटराईजेशन के नाम पर डाटा एक्सेल सीट लगाकर परीक्षा होने लगी। ऐसा करने का मकसद व्यापम की आड़ में चल रहे सीटों के लेनदेन का पर्जीवाड़ा छिपाना और भ्रष्टाचार के लिए सुरक्षित तंत्र बनाना था, जिसमें भ्रष्टाचारी लोग पूरी तरह से सफल रहे और अरबों रूपयों के बारे-न्यारे किये गये। इस जबरिया नियम बदलने के शातिर खिलाड़ी कौन-कौन थे, उनके विरूद्व भी प्रकरण दर्ज क्यों नहीं किया गया?

16. वर्ष 2005 से व्यापम के चेयरमेन के रूप में सर्वश्री एस.सी. बेहार, अजीत रायजादा, रणवीरसिंह, रंजना चैधरी, सुधीर चतुर्वेदी, स्वदीप सिंह एवं डी.के. सामंतरे ने भी काम किया है। इन सभी की मौजूदगी में भ्रष्टाचार का यह व्यापक महाघोटाला कैसे फलता-फूलता रहा, इनकी भूमिकाएं क्या थी? इसे लेकर एसटीएफ ने व्यापम के चेयरमेन के रूप में कार्यरत उक्त सभी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से एसटीएफ ने पूछताछ क्यों नहीं की?

17. अरबों रूपयों के इस खेल में पीएमटी घोटाले को लेकर तत्कालीन डीएमई सहित चिकित्सा शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारियों की भूमिकाएं क्या थीं, क्या होनी चाहिए थी और क्या हुईं। इस पर अब तक पर्दा क्यों पड़ा हुआ है? डीएमई चूंकि भाजपा के वरिष्ठ नेता और एक केंद्रीय मंत्री के रिश्तेदार हैं, इस लिहाज से उन्हें जांच प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है, ऐसा क्यों?

18. केंद्रीय पर्यवेक्षकों की भूमिका भी शक के दायरे में:- प्रदेश के इस बहुचर्चित महाघोटाले में केंद्रीय पर्यवेक्षक रहे लगभग आधा सैकड़ा सेवानिवृत्त अधिकारियों की भूमिकाएं भी शक के दायरे में है, केंद्रीय पर्यवेक्षकों की सूची में रिटायर्ड चीफ सेक्रेट्री, डीजीपी और ईएनसी स्तर के पर्यवेक्षकों के नाम शामिल हैं। जिन्हें पेपर सेटिंग, सुरक्षा और रिजल्ट प्रोसेसिंग तक के कार्यों की जिम्मेदारी थी और जब इन केंद्रीय पर्यवेक्षकों को मोटी तनख्वाह दी जाती रही, इस मामले में उनसे पूछताछ क्यों नहीं की गई।

हमें विश्वास है कि हमारे द्वारा उल्लेखित उक्त कथन पर एसटीएफ कृपापूर्वक गंभीर संज्ञान लेकर जांच में शामिल करेगी।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !