नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में पीड़िता या उसके परिजनों की ओर से एफआईआर दर्ज कराने में देरी करने को अधिक तवज्जो नहीं दी है। चूंकि पीड़िता को साहस कर सबके सामने आना होगा और खुद को रुढ़िवादी समाज की मलिनता के लिए तैयार रखना होगा। लिहाजा देरी स्वाभाविक है।
जस्टिस दीपक मिश्रा और एनवी रमाना की खंडपीठ ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में किन्ही भी हालात में पीड़िता या उसके मां-बाप की ओर से एफआईआर दर्ज कराने में देरी करना इतना अहम नहीं है। अदालत की ओर से पीड़िता पर्याप्त सुरक्षा और हर्जाने की हकदार है।
चूंकि पीड़िता खुद इतने बड़े सदमे से गुजरती है और उस सबके बीच उसके मन में असमंजस, संताप और रूढ़िवादी समाज की प्रताड़ना का भय रहता है। इसलिए अपराध के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने में देरी होना उसे न्याय मिलने के आड़े नहीं आ सकता।