इंदौर। पेरेंट्स अपने बच्चों को मंहगे CBSE स्कूलों में भर्ती कराते हैं, प्रबंधन की मनमानी सहन करते हैं ताकि उन्हें अच्छे टीचर्स मिलें लेकिन एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इंदौर के ज्यादातर CBSE स्कूलों में अच्छे टीचर्स का टोटा चल रहा है। प्रबधंन दोयम दर्जे के टीचर्स से काम चला रहा है।
पढ़िए पत्रकार गजेंद्र विश्वकर्मा की यह रिपोर्ट
स्कूल के नए सेशन से पहले शहर के सीबीएसई स्कूलों को थोक में टीचर्स की जरूरत पड़ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि शहर में दो साल में 10 नए बड़े स्कूल खुल गए हैं। अब अच्छे टीचर्स ढूंढना सबके लिए चुनौती साबित हो रहा है। कई टीचर्स स्कूल छोड़कर कोचिंग की ओर जा रहे हैं, जिससे स्टूडेंट्स और पैरेंट्स को भी कई तरह की परेशानियां आ रही हैं।
स्कूल संचालकों का कहना है कि टीचिंग में आने के लिए युवाओं को अवेयर करने की जरूरत है। शहर में 90 से ज्यादा सीबीएसई स्कूल हो गए हैं और हर साल ही पांच-दस नए स्कूल और आते जा रहे हैं। शहर में स्टूडेंट्स की संख्या को देखते हुए बाहर के कई नामी स्कूल भी यहां खुल गए हैं। इनमें इस समय अच्छे टीचर्स को ढूंढने की जबरदस्त परेशानी चल रही है। स्कूल अच्छे टीचर्स को ढूंढने के लिए प्रचार-प्रसार में ही लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं।
ये स्थिति इसी साल सबसे ज्यादा है, क्योंकि दो साल पहले तक शहर में अच्छे टीचर्स आसानी से मिल जाते थे। जानकार इसके पीछे दो-तीन बड़े कारण बता रहे हैं। इनमें अच्छे शिक्षकों का खुद की कोचिंग शुरू कर देना या नए अच्छे टीचर्स का फील्ड में नहीं आना अहम हैं। स्टूडेंट्स अब टीचर बनने में रुचि ही नहीं रख रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस समय जो भी टीचर्स बनना चाहते हैं, उनमें से ज्यादातर हायर एजुकेशन, टेक्निकल एजुकेशन और अन्य सरकारी शिक्षण संस्थानों में काम करना चाहते हैं। प्राइवेट स्कूल बेहतर पैसा ऑफर करने लगे हैं, फिर भी शहर में अच्छे टीचर्स बहुत कम मिल पा रहे हैं।
सिर्फ फीमेल टीचर्स ही बचें
जो टीचर्स हैं, उनका भी ध्यान कोचिंग संस्थान और अन्य प्राइवेट प्रोफेशनल शिक्षा देने वाले संस्थानों की ओर जा रहा है। इसका कारण वहां मिलने वाला हाई पैकेज है। जिन स्कूलों को शहर में लंबा समय हो गया है, उनके पास तो फिक्स टीचर हैं, लेकिन बाहर से आ रहे नए स्कूलों या कुछ साल पुराने स्कूलों से टीचर्स के चले जाने से अब उन्हें अच्छे टीचर्स की बहुत कमी महसूस हो रही है। मेल टीचर्स तो च्यादातर कोचिंग और प्रोफेशनल कामों की ओर जा रहे हैं। इससे शहर के ज्यादातर स्कूलों में अधिकांश फीमेल टीचर्स ही बची हैं।
डिग्री से ज्यादा जरूरी अनुभव
सीबीएसई स्कूलों में बीएड और एमएड किए शिक्षकों को रखा जाता रहा है, लेकिन दो-तीन सालों में इस ट्रेंड में बड़ा बदलाव आया है। अब कई स्कूल एमएससी और बीएससी वाले अनुभवी शिक्षकों को भी रखने लगे हैं। कारण यही कि स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षक बहुत कम हैं। कॉलेज से पासआउट होने के बाद ज्यादातर स्टूडेंट्स प्रोफेशनल फील्ड में जा रहे हैं या कंपनियों में जॉब करने लगे हैं। ऐसे में कई स्कूल अच्छे फ्रेशर्स को भी शिक्षक बनने के लिए ऑफर कर रहे हैं।
सहोदय की मीटिंग में भी हुई बातें
सहोदय की मीटिंग में भी कई बार टीचर्स की कमी को लेकर बात हो चुकी है, लेकिन फिलहाल इसका कोई रास्ता नहीं निकला। शहर या आसपास के क्षेत्र में जो भी अनुभव शिक्षक हैं, उन्हें बुलाने के लिए हर कोई प्रयास कर रहा है। कई स्कूलों और कोचिंग में तो बाहरी राज्यों के शिक्षकों को भी अच्छे पैकेज पर रखा जा रहा है। पिछले सालों में कई नए स्कूल आने से स्कूलों के बीच एक प्रतिस्पर्धा भी बनी हुई, इसलिए सीटों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है और टीचर्स का पैकेज भी। हालांकि शिक्षकों का ध्यान कोचिंग संस्थानों की ओर चले जाने से स्कूलों को शिक्षक ढूंढने के लिए भी प्रचार में लाखों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। आईनेक्स्ट ने जब शिक्षकों की कमी जानने के लिए कई स्कूलों के संचालकों से बात की तो यही बात सामने आई कि 'शिक्षक तो पर्याप्त संख्या में हैं, लेकिन अच्छे शिक्षक बहुत कम हैं।' हर स्कूल को बेस्ट शिक्षक चाहिए, इसलिए इन्हें प्रचार का सहारा लेना पड़ रहा है।
हाल-ए-हकीकत
हर साल शहर में आ रहे हैं 5-10 नए सीबीएसई स्कूल।
शहर में शिक्षकों की कमी, स्कूल के कई शिक्षक कोचिंग में जाने लगे हैं।
अच्छा पैकेज देने के बाद भी बहुत कम संख्या में शिक्षक बनने के लिए सामने आ रहे युवा।
जो शिक्षक बनना चाहते हैं, वे स्कूलों के बजाए हायर एजुकेशन में प्रोफेसर बनना चाहते हैं।
