राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक कहावत है कि “जाट अपने निर्णय हुक्के को सामने रखकर खाट पर लेता है |” हरियाणा,के गांव की चौपालों पर तेज होती हुक्कों की गुड़गुड़ाहट एक बड़ी बेचैनी की कहानी बयां कर रही है। आपस में सिर जोड़कर बतिया रहे बुजुर्गों व युवाओं में उच्चतम न्यायलय के फैसले के बाद एक सोच नए सिरे से जंग शुरू करने का है वहीं सियासतदां इस फैसले को पढ़ने के बाद ही कोई टिप्पणी कर ”वेट एंड वॉच” की लाइन पकड़ चुके हैं। कुल मिलाकर राजस्थान और हरियाणा में एक बड़ा हिस्सा रखने वाला जाट समुदाय एक साथ कई विकल्पों की उधेड़-बुन में जुटा हुआ है।जाट समुदाय अब तक ओबीसी कोटे में आरक्षण मिलने पर इत्मीनान में था लेकिन, ताजा फैसले से वह हिल गया है। जाट राजनीति करवट लेने को आतुर दिख रही है।
जाट समुदाय ने लंबी लड़ाई और कई शहादतों के बाद केंद्र में यूपीए के शासनकाल के अंतिम दिनों में ओबीसी कोटे में आरक्षण हासिल कर लिया था। खापों व संगठनों को यकीन हो गया था कि अब कहीं कोई रुकावट नहीं लेकिन, ओबीसी आरक्षण रक्षा समिति की तरफ से उच्चतम न्यायलय में लगाई गई याचिका गले का फांस साबित हुई।उच्चतम न्यायलय ने इसी याचिका पर फैसला सुनाकर जाट समुदाय को बहुत बड़ा झटका दे दिया है। हरियाणा में यह फैसले जाट बाहुल्य इलाकों में अपना असर छोड़ चुका है और तुरंत ही इस पर गतिविधियां भी तेज होती दिखीं। जहां इस समुदाय का आम व्यक्ति फैसले पर नुक्ताचीनी में जुटा दिखाई दिया वहीं जाट नेता एकजुट होने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं।सर्व जाट खाप पंचायत २२ मार्च को जींद में जुट रही है। । इस जुटान से यह संकेत मिला है कि अदालत के फैसले से जाट समुदाय फिर से न केवल इकट्ठा हो रहा है बल्कि उसके भीतर आंदोलन के साथ-साथ नए सिरे से कानूनी लड़ाई की सोच भी पनप रही है।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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