राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस चाहे कितना बड़ा जुलूस निकाले देश में बनी इस राय को बदल नहीं सकती कि यूपीए की जिस गठबंधन सरकार का मनमोहन सिंह ने लगातार दो बार नेतृत्व किया, वह तमाम गड़बड़ियों, विवादों और घोटालों से घिरी रही और उसकी पहचान एक भ्रष्ट सरकार के रूप में ही बनी। बावजूद इसके, मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत ईमानदारी को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठा।
ऐसे में कानूनी पेचीदगी से अनजान लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं प्रक्रियागत जटिलता के चलते कानून के हाथ गलत गरदन की ओर तो नहीं बढ़ रहे? साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि इस मामले में मनमोहन सिंह को तलब करने का फैसला सहज कानूनी प्रक्रिया का नतीजा नहीं दिखता। तालाबीरा-2 कोल ब्लॉक आबंटन से जुड़े इस प्रकरण में सीबीआई ने अक्टूबर 2013 में कुमारमंगलम बिड़ला, पीसी पारेख और अन्य के खिलाफ प्राथमिक तौर पर मामला दर्ज किया और पिछले साल अगस्त महीने में उसने ठोस सबूतों की कमी बताते हुए क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी। इसे खारिज करते हुए अदालत ने सीबीआई को विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा।
दो महीने बाद सीबीआई ने संशोधित क्लोजर रिपोर्ट फाइल की, लेकिन कोर्ट ने उसे भी खारिज कर दिया और सीबीआई को निर्देश दिया कि वह मनमोहन सिंह और पीएमओ अधिकारियों के भी बयान दर्ज करे। 19 फरवरी को जांच एजेंसी ने अंतिम रिपोर्ट फाइल की, जिसमें बिड़ला और पारेख के खिलाफ प्रथम दृष्ट्या सबूत मिलने की बात कही गई थी, लेकिन मनमोहन सिंह का कोई उल्लेख नहीं था। बावजूद इसके, कोर्ट ने उन्हें आरोपी के रूप में तलब कर लिया। बेशक, कोर्ट को ऐसा करने का अधिकार है। यहाँ सवाल जाँच एजेंसी की निष्पक्षता और राजनीतिक दवाब का भी है , जिसे नजर अंदाज़ करना मुश्किल है |
मामले की मौजूदा अवस्था में यही माना जा सकता है कि अदालत ने ऐसा आदेश दिया है तो निश्चित रूप से इसकी कोई ठोस वजह होगी। जैसे-जैसे अदालती प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
