जबलपुर। श्रम कल्याण विभाग में श्रमिकों के नाम पर लोन के फर्जीवाड़े में सीबीआई को कुछ अहम सबूत हाथ लगे हैं। प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक जबलपुर से कटनी के बीच 100 से ज्यादा गांवों के करीब 50 हजार लोगों के नाम पर फर्जीवाड़ा कर लगभग 3 अरब का लोन निकाला गया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि जांच पूरी होने तक मामला कई अरब पर पहुंच सकता है। इस फर्जीवाड़े में श्रम कल्याण विभाग के कई अधिकारियों के साथ बड़े माइनिंग कारोबारी और कुछ बड़े नेताओं की मिलीभगत की भी जांच की जा रही है।
NGO के नाम पर जुटाए दस्तावेज
लोन में फर्जीवाड़ा करने के लिए पूरा रैकेट काम कर था। जिन गांवों के लोगों के नाम पर लोन निकालना होता था वहां 15 दलाल खुद को एनजीओ कार्यकर्ता बताकर सक्रिय रहते थे। ये पहले श्रमिकों की सारी जानकारी जुटाते थे। इसके बाद उनके नाम पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर लेते थे। इन दस्तावेजों में श्रमिक का उपनाम बदल दिया जाता था। यही दस्तावेज आवेदन पत्र में लगाकर श्रम कल्याण बोर्ड से स्वीकृत कराए जाने के बाद खितौला डिस्पेंसरी से मेडिकल चेकअप कराया जाता था। इसके बाद लोन जारी हो जाता था।
पात्र आवेदकों से भी लेते थे पैसा
जांच में यह भी पता चला है कि कई पात्र आवेदकों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद गांवों में सक्रिय दलाल आवेदक से संपर्क करके 15 हजार अधिकारियों को दे देते थे और 15 हजार खुद ले लेते थे। बाकी के 30 हजार श्रमिक को दे दिए जाते थे लेकिन ऐसा महज 10 प्रतिशत प्रकरणों में होता था, ज्यादातर आवेदकों को पैसा मिला ही नहीं।
हर गांव में 15% लोनधारी
शुरुआती जांच के बाद सीबीआई को पता चला है कि जबलपुर से कटनी के बीच 100 गांवों की 15 प्रतिशत आबादी लोन ले चुकी है। लेकिन ज्यादातर लोगों को पैसा आधा मिला या मिला ही नहीं। सबूतों को पुख्ता करने के लिए जांच दल जब्त कार्डों के जरिए ग्रामीणों से पूछताछ करेगा। इसके अलावा श्रम कल्याण विभाग के पूर्व व वर्तमान अधिकारियों की निशानदेही पर दलालों व जनप्रतिनिधियों की गिरफ्तारी हो सकती है।
