भोपाल। जब से केन्द्र में मोदी का राज शुरू हुआ है मप्र की तरक्की के पंख टूटकर गिर गए हैं। मप्र फिर से बीमारू राज्य की तरफ तेजी से जा रहा है। केन्द्र से सहायता नहीं मिल रही, मजबूर शिवराज को राज्य की व्यवस्थाएं चलाने के लिए 1200 करोड़ का कर्जा बाजार से उठाना पड़ा। यह मंहगे ब्याज वाला कर्जा है चुकाने में दम निकल जाएगा। अब तो सब कहने लगे हैं कि इससे तो मनमोहन का राज बेहतर था। जो मांगते थे मिल जाता था, आनाकानी करते तो अनशन की धमकी।
तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती दिखाई नहीं दे रही है। यही वजह है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 समाप्त होने से 20 दिन पहले राज्य सरकार को अपने जरूरी खर्च चलाने के लिए बाजार से 1200 करोड़ रु.का कर्ज उठाना पड़ा। अब मप्र पर एक लाख करोड़ से अधिक का कर्ज हो गया है।
इधर राजस्व अनुमान में भी लगातार कमी दिखाई दे रही है। वित्त विभाग का अनुमान था कि 31 मार्च तक सरकारी खजाने में 6873.77 करोड़ का अधिक राजस्व जमा होगा, लेकिन इसमें लगभग 1000 करोड़ से अधिक की कमी दिख रही है। इस अवधि में सिर्फ 5500 करोड़ का ही राजस्व अधिक जमा हो पाएगा।
पिछली बार की तुलना में 10100 करोड़ ज्यादा
आज की तारीख में राज्य सरकार पर 106263.64 लाख करोड़ का कर्ज हो गया है, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 10100 करोड़ अधिक है। हालांकि सरकार का कहना है कि उसके द्वारा लिया गया कर्ज पूंजी निवेश यानि इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में खर्च किया जा रहा है।
हालांकि खजाने की बिगड़ती हालात को संभालने सरकार ने 15 जनवरी से सभी विभागों में खरीदी पर रोक लगाई थी, फिर भी सरकार को जनवरी, फरवरी और मार्च में ही 3200 करोड़ का कर्ज बाजार से लेना पड़ा।
हर साल बढ़ रहा कर्ज प्रदेश में हर साल हजारों करोड़ का कर्ज बढ़ रहा है।
वर्ष 2011-12 में 71478.10,
वर्ष 2012-13 में 77413.87,
वर्ष 2013-14 में 96163.64
और वित्तीय वर्ष 2014- 15 में 14 मार्च 2015 तक की स्थिति में प्रदेश सरकार पर 106263.64 लाख करोड़ का कर्ज हो गया है।