उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। विरोध प्रदर्शन और सड़कों पर हंगामा खड़ा करना हिन्दू संगठनों का शगल बन गया है। चाहे सरकार अपनी ही क्यों ना हो। देश में मोदी सरकार है, कई राज्यों में भाजपा की सरकार है फिर भी हिन्दू संगठन लगे हैं सड़कों पर प्रदर्शन करने। फिल्म निर्माता, निर्देशक और कलाकारों का विरोध कर रहे हैं, सेंसर बोर्ड के सामने धरना कोई नहीं दे रहा।
देश में जब कांग्रेस की सरकार थी तब सेंसर बोर्ड उनके नियंत्रण में हुआ करता था, ऐसी स्थिति में जब सरकार सुनवाई नहीं करती थी तो जनता के बीच जाना मजबूरी हो जाया करता था। फिल्मों के निर्माता, निर्देशक और कलाकारों पर भी नैतिक दवाब बनाने का उपक्रम ठीक था परंतु अब तो अपनी सरकार है, अब क्या समस्या है ? अपना बेटा राज करे और बाप पोस्टर फाड़े, कैसा लगेगा। इत्ती सी बात समझ क्यों नहीं आ रही हिन्दू संगठनों को।
यदि गैर भाजपाई राज्यों में 'पीके' को टैक्स फ्री किया जा सकता है तो भाजपाई राज्यों में 'पीके' को सिनेमाघरों में प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जा रहा। गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे भाजपाई राज्यों में इन फिल्मों को चलने क्यों दे रही है सरकार, और यदि सरकार चलने दे रही है तो इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पुतले क्यों नहीं जला रहे हिन्दू संगठन। अपने घर के गद्दारों को तो पहले सबक सिखाना चाहिए।
अब 'पीके' के बाद 'बजरंगी भाई जान' आ गई है। इस पर लवजिहाद को प्रमोट करने का आरोप लगा है। एक बार फिर वही सड़कों पर पोस्टर फाड़ने की योजनाए बन रहीं हैं। समझ नहीं आता, समझदारी कब आएगी। अपनेराम की तो इन कथित धर्मरक्षकों से सिर्फ एक अपील, हो हिम्मत तो जाओ पीएम हाउस, लगाओ झंडे डंडे, दो धरना, अंदर अपने ही मोदी है, डरने की कोई बात नहीं, कहो उनसे कि सेंसर को सुधारें वरना अपन उनको सुधार देंगे। फिर देखते हैं, क्या होता है इन धर्मधुरंधरों का।