कोयला क्षेत्र: देश हित में जिद छोड़ें

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कोयला क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी के विरोध में कोयला मजदूरों की हड़ताल से कोयला उत्पादन पर गहरा असर पड़ा है। हड़ताल दो-तीन दिन और चल गई तो कुछ राज्यों में इससे गंभीर विद्युत संकट भी देखने को मिल सकता है। देश का लगभग 60  प्रतिशत बिजली उत्पादन कोयले से ही होता है। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कई सालों में यह देश की सबसे बड़ी हड़ताल है|

श्रमिकों और सरकार के बीच अभी तक वार्ता का एक दौर चला है, पर बात बनी नहीं। समस्या दोनों पक्षों के बीच अविश्वास की है। मोदी सरकार के आने के तत्काल बाद सरकार के कुछ प्रतिनिधियों की बातों से ऐसा लगा था कि सरकार कोयला उद्ध्योग का निजीकरण नहीं करेगी। लेकिन अभी हाल यह है कि बिना किसी बातचीत के बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर दी जा रही हैं। मजदूरों को लग रहा है कि यह उनकी बर्बादी की शुरुआत है। अर्से से कोयला क्षेत्र एक बुनियादी किस्म की खामी का शिकार रहा है। सरकार चाहे किसी की हो, कारोबारियों, नेताओं, अफसरों, दलालों और अपराधियों का एक गठजोड़ कोयला खदानों के दोहन पर अपना एकाधिकार बनाए रखने में कामयाब रहा है।नीतियों को प्रभावित करने में भी इस गठजोड़ की अहम भूमिका रही है। ऊपर से किए जाने वाले सारे बदलाव इस गठजोड़ को अछूता छोड़ देते हैं।

अभी कोयले के दोहन में भारी गड़बड़ी की वजह से ही हमें इसका आयात करना पड़ रहा है। सरकार को आगे बढ़कर मजदूरों को आश्वस्त करना होगा कि नई व्यवस्था में उनके हित सुरक्षित रहेंगे। काम बंद रखने से तो किसी का कोई फायदा नहीं होने वाला। कोयला मजदूर देश के सामने अपना प्रतिवाद दर्ज करा चुके हैं। अब उन्हें और सरकार को मिलकर देशहित में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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