वाईफाई कर देने से स्मार्टसिटी नहीं बनती

डॉ मसूद अख्तर। स्मार्ट सिटी का निर्माण तब ही संभव है जब क्लीन सिटी और ग्रीन सिटी के रूप में शहर को विकसित कर बनाया जाये। स्मार्ट और सिटी अपने आपमें अंतर प्रदर्शित करते हैं। वाई फाई शहर कर देने से स्मार्ट सिटी का दर्जा नही मिलता है। जब तक लोगों की समस्याओं का निराकरण उनके अधिकार के साथ नहीं दिया जाता है तब तक स्मार्ट सिटी को नहीं बनाया जा सकता है।

कलेक्टर कार्यालय वाई फाई सुविधा से जुड जाता है तो वह भी स्मार्ट कलेक्ट्रेट का दर्जा प्राप्त नहीं करेगा। क्योंकि कलेक्ट्रेट में आने वाले लोगों को उनकी समस्याओं से जब तक निजात नहीं मिलेगा तब तक वह स्मार्ट कलेक्ट्रेट का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकेगा। शहर की कॉलोनियों को सर्वसुविधायुक्त बना दिया जाये, तो वह स्मार्ट कॉलौनी नहीं कहलायेगी क्योंकि उस कॉलौनी के अंदर जब तक लोगों को शिक्षा स्वाथ्य, जल, व्यसाय, मार्डन बाजार की सुविधायें नहीं मिलेगी, तब तक वह स्मार्ट कॉलौनी नहीं कहलायेगी।

जब तब लोगों के अंदर स्मार्टनेस की भावना जागृत नहीं होगी, जब तक शहर में पर्यावरण को सुरक्षित नहीं किया जाता है जब तक जल के स्रोतों को संरिक्षत नहीं किया जाता है, जब तक स्वास्थ्य चिकित्सालयों में समुचित स्वास्थ्य लाभ नहीं दिया जाता है, जब तक शहर वासियों को उनके अधिकार नहीं दिया जाते हैं, जब तक क्लीन सिटी और ग्रीन सिटी का स्वरूप नहीं होगा, तब तक अपने शहर को स्मार्ट सिटी नहीं कहा जा सकता है।

स्मार्ट सिटी दो प्रकार से बनाई जा सकती है। एक तो पुराने शहर के बाहर उपयोगिता के अनुसार जमीन तलाशकर वहां पर शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, बाजार, के साथ साथ व्यवसाय करने का स्थान बनाकर पर्यावरण को संतुलित करते हुये जल स्रोतों को बनाते हुये हरवर्ग हर समुदायों को समानता के साथ बसाकर हर प्रकार की सरकारी और निजी सुख सुविधायें दी जायें तो वह अपने आपमें स्मार्ट सिटी का दर्जा प्राप्त कर सकती है।

वहां पर बसने वालों को सस्ते दामो में जमीन देकर व्यवस्थित आवासीय एवं व्यवसायिक भवन निर्मित करवाये जायें और वहां रहने वालो को वहीं पर सभी जीवन यापन संबंधी सभी प्रकार की शासन स्तर की एवं निजी सुविधायें महैया हो, ऐसी स्थिति में स्मार्ट सिटी का दर्जा देना गौरववाली बात होगी। परन्तु यह सबसे कठिन काम है।

शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिये जरूरी है लोगों में स्मार्टनेस होना चाहिये। स्मार्टनेस का अर्थ है लोगों में अपने कार्य, अपने कर्तव्य और अपने जीवन मूल्यों को सार्थक बनाने लोगोंं के मददगार बनना। यहां के लोग स्मार्टनेस का मलतब निकालते हैं जागरूक, चालू, चालाक, जुगाडू इत्यादि जो कतई नहीं होना चाहिये। शहर की साफ साफाई व्यवस्था को देखें तो शहर में ऐसा कोई स्थान नहीं हैं। जहां पर कचड़े के ढेर ना हों, शहर में ऐसा कोई स्थान नहीं हैं जहां पर ट्राफिक व्यवस्था संतुलित हो, शहर में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां सुरक्षित पार्क हो शहर में ऐसे कोई तालाब नहीं है जहां पर अतिक्रमण ना हों, शहर में ऐसे कोई पानी के स्रोत नहीं बचे हैं जिन्हे संरक्षित करके रखा गया हो, इत्यादि।

इतना ही नहीं वर्गवार ठेकेदारीप्रथा पर भी पाबंदी लगना चाहिये। हर वर्ग के व्यक्ति को अपने जीवन यापन करने के लिये हर प्रकार का काम करने का अधिकार होना चाहिये परन्तु ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिये साफ सफाई करने वाले लोगों ने अपना अपना ऐरिया निर्धारित करके रखा है परन्तु उस निर्धारित ऐरिया में ना तो वे साफ सफाई करते हैं, और ना ही दूसरे को करने देते हैं। स्मार्ट सिटी के लिये शहर के लोग सुरक्षित महसूस करें, गम्भीर होने वाले बीमार लोगों को एम्बुलेन्स सुविधा उपलब्ध हो, शहर की सड़कें गढढेमुक्त और वनवे के साथ हों, स्कूल/कॉलेजों में सांस्कारित पढाई हो, सब्जी मार्केट, मुख्य बाजार में फैलने वाला कचड़ा सडक पर नहीं कूढेदान में फेंका जाये, हांथ ठेला, रिक्शा, वाहन पार्किंग का स्थान निर्धारित हो, जरूरत है वर्गवार ठेकेदारीप्रथा को समाप्त करने की जरूरत है।

जरूरतमंद लोगों को हर प्रकार के काम करने की, जरूरत है पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने की, जरूरत है स्भाभिमान के साथ लोगों के जिंदगी बिताने की तभी काफी हद तक स्मार्ट सिटी कहलायेगी। उन्होने बताया कि स्मार्ट सिटी को दर्जा देने के लिये पचास प्रतिशत काम शहर की नगरपालिका का होता है तो पचास प्रतिशत काम शहर के लोगों का होता है।

लेखक डॉ मसूद अख्तर (IAS) छतरपुर कलेक्टर हैं।
सहयोग एवं समन्वय: रवि गुप्ता, पत्रकार

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