भोपाल। देश के आम नागरिकों के लिए शायद यह सामान्य ज्ञान से ज्यादा कुछ ना हो परंतु पुरातत्व से संबंध रखने वालों के लिए यह चौंकाने वाला खुलासा है कि नारियल की उपत्ति अमेरिका में नहीं बल्कि मप्र, भारत में 6.7 करोड़ साल हुई थी। उन दिनों मप्र के मण्डला जिले तक समुद्र फैला हुआ था। धीरे धीरे समुद्र सिमटता गया और शहर बसते चले गए।
पांच साल पहले अमेरिका में हुये शोध में दावा किया गया था कि विश्व भर में समुद्रों के किनारे उगने वाले नारियल की उत्पत्ति का स्थान दक्षिण अमेरिका है लेकिन हाल ही में बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान लखनऊ में हुये शोध से पता चला है कि नारियल की उत्पति अमेरिका में नहीं बल्कि भारत में हुई है। नारियल यहां से उगने के बाद धीरे धीरे विश्व के अन्य हिस्सों में फैला है।
हायर सेकेण्डरी बबलिया मण्डला में पदस्थ वरिष्ठ अध्यापक डी.के.सिंगौर ने बताया कि गत वर्षो में बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान लखनऊ की वैज्ञानिक डाॅ रश्मि श्रीवास्तव और उनके दल को सिवनी, मण्डला और डिण्डौरी के जीवाष्मों का अवलोकन कराया था। उक्त खुलासा घंसौर के बिनोरी रिजर्व फारेस्ट में मिले नारियल के फासिल से हुआ है। इस शोध से पता चलता है कि साढ़े छः करोड़ साल पहले तक समुद्र तल की ऊंचाई ज्यादा थी और समुद्र मध्यप्रदेश तक फैला था तथा यहां नारियल के पेड़ उगते थे। यह शोध प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ’एक्ट पैलियोबाॅटनिका’ में भी प्रकाशित हुआ है। नारियल के क्षैत्र में काम करने वाले विश्व के वैज्ञानिकों के बीच यह शोध पत्र चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस शोध से पहले तक नारियल का सबसे पुराना जीवाश्म नार्थ कोलंबिया (अमेरिका) में 6.1 करोड़ साल पहले का पाया गया था। इसी आधार पर अमेरिकी वैज्ञानिक डाॅ कैरोलिना ने वर्ष 2009 में नारियल के उत्पत्ति स्थान पर अपना निष्कर्ष दिया था लेकिन घंसौर मप्र से पाये गये 6.7 करोड़ साल पुराने जीवाश्म से स्पष्ट होता है कि नारियल की उत्पति भारत में हुई थी। मप्र आज भारत के मध्य स्थित है यहां से समुद्र की दूरी हजारों किलोमीटर है। नारियल के पेड़ आज भी केवल समुद्र के किनारे ही उगते हैं। ऐसें में शोध के कई अनुमान लगाये जा सकते हैं जैसें उस समय समुद्र तल की उचाई बहुत अधिक होगी और मप्र के कई क्षैत्रों तक समुद्र फैला होगा।
वरिष्ठ अध्यापक डी.के.सिंगौर ने बताया कि फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी अमेरिका के स्टीव मैनचेस्टर, मिसीगैन यूनिवर्सिटी अमेरिका की सलीना सालडोम ने हाॅल ही में जीवाश्मों का अध्ययन करने मण्डला डिण्डौरी घंसौर का द्वौरा किया है उनके शोध कार्यो से भी कई महत्वपूर्ण नतीजे सामने आने वाले हैं।
(डी.के.सिंगौर)