पढ़िए जब अटलजी ने भारत रत्न ने लिए किया सख्ती से इंकार

नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार ने बीजेपी के शीर्षस्थ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने का निर्णय किया है। यह निर्णय वाजपेयी के जन्मदिन से एक दिन पहले किया गया है। विपक्ष में रहते हुए बीजेपी यूपीए सरकार से यह मांग करती रही कि वाजपेयी को सर्वोच्च सम्मान दिया जाए, मगर उसने ऐसा नहीं किया।

दिलचस्प बात यह है कि वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते ही सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों ने आग्रह किया था कि उन्हें भारत रत्न दे दिया जाए।

बात तब की है जब 1999 में करगिल युद्ध के बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने जीत हासिल की थी और वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। तब जीत का उत्साह पार्टी पर हावी था। 1998 के परमाणु परीक्षण और करगिल में पाकिस्तान को धूल चटाने के बाद मिली जीत के बाद पार्टी के कई नेताओं को लगा कि वाजपेयी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए।

वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे वरिष्ठ पत्रकार अशोक टंडन बताते हैं कि वाजपेयी को ये दलीलें दी गईं कि जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को भारत रत्न दिलवाया था। वाजपेयी से कहा गया कि उनका भारतीय राजनीति में ऐसा ही मुकाम है लिहाज़ा उन्हें ये सम्मान स्वीकार करना चाहिए, लेकिन वाजपेयी ने इनकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि उन्हें ये उचित नहीं लगता कि अपनी सरकार में खुद को ही सम्मानित किया जाए। वाजपेयी के इनकार के बाद वरिष्ठ मंत्रियों ने योजना बनाई कि जब वाजपेयी किसी विदेश दौरे पर जाएं तब उनकी अनुपस्थिति में सरकार उन्हें भारत रत्न देने का निर्णय कर दे, लेकिन वाजपेयी को इसकी भनक लग गई। उन्होंने सख़्ती से ऐसा करने से इनकार कर दिया।

आज जब उन्हें भारत रत्न देने का ऐलान हुआ है वो शायद इस पर अधिक प्रतिक्रिया देने की स्थिति में भी नहीं हैं, लेकिन यह ज़रूर है कि वाजपेयी को भारत रत्न मिलने में देरी हुई है। उन्होंने ख़ुद को भारत रत्न न देकर एक बड़ा राजनीतिक उदहारण पेश किया था।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!