आशीष दुबे/नईदिल्ली। डा. मनमोहन सिंह को भले ही लोग भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में जानते हों परंतु मनमोहन सिंह खुद बेहतर जानते हैं कि वो एक अर्थशास्त्री हैं और शायद इतिहास में अपना नाम भी एक प्रख्यात अर्थशास्त्री के रूप में ही दर्ज कराना चाहते हैं।
यूपीए शासनकाल में कई अच्छी योजनाएं लागू करने वाले डा. मनमोहन सिंह को कभी उसका क्रेडिट नहीं मिला परंतु उपहास भरपूर उड़ाया गया। वो लगातार 10 साल तक वचनबद्ध रहे और कभी अपनी सीमाएं नहीं लांघी परंतु आज जब मुढ़कर देखें तो हासिल कुछ भी नहीं। प्रधानमंत्री का पद मनमोहन सिंह के लिए घाटे का सौदा रहा। इससे तो पहले ही बेहतर था लोग मनमोहन सिंह को दिग्गज अर्थशास्त्री तो मानते थे, अब एक फेलियर पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में जानेंगे।
मनमोहन सिंह अपनी यह इमेज तोड़ना चाहते हैं। लाइफ की लास्ट पारी वो देश के लिए खेलना चाहते हैं ताकि देश उन्हें एक अच्छे इंसान के रूप में याद रखे। इसी के चलते कल फिक्की में उन्होंने इशारा किया कि आर्थिक मामलों में जो तरक्की मिल रही है हम उससे ज्यादा कर सकते हैं। इशारा साफ है कि मनमोहन सिंह उस बिन्दु को देख पा रहे हैं जहां मोदी के अर्थशास्त्रियों की नजर नहीं पहुंच पाई है।
बात को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार शशि झा ने भी इसी सभा में कह दिया कि मनमोहन सिंह को सेमिनारों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, सरकार में अपना योगदार देना चाहिए।
कुल मिलाकर ग्राउंड तैयार हो गया है। मनमोहन ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। टारगेट भी सेट करके बता दिया है कि मौका मिला तो विकास दर 8 प्रतिशत ला दी जाएगी। अब देखना यह है कि मोदी सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।