
केंद्रीय श्रम मंत्रालय इस विषय पर राज्यों की बैठक बुलाएगा और इस संबंध में सभी राज्यों से भी राय ली जाएगी. 1948 के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत 45 तरह की आर्थिक गतिविधियों को इस अधिनियम में शामिल किया गया था, जिसे राज्यों में भी लागू किया गया.
इस मुद्दे पर पहले ही अंतर मंत्रालयीय समिति पहले से ही काम पर लगी हुई है. मुद्दे पर सहमति बनने के बाद राज्यों को न्यूनतम वेतन 15000 तय करना होगा.
अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस ने श्रम मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव अरुण कुमार सिन्हा का बयान प्रकाशित किया है, जिसके मुताबिक 1948 के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में संधोधन करके एक प्रावधान जोडा़ जाएगा, जिसके तहत राज्यों को न्यूनतम मासिक वेतन की इस संशोधित राशि को लागू करना होगा.
अगर इस कानून में संशोधन हो जाता है तो न्यूनतम वेतन दोगुने से भी ज्यादा यानी 15000 हो जाएगा जो कि अब तक इसका आधा है. इस कानून से बड़ी संख्या में प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों को लाभ मिलेगा.
हालांकि इस कानून के संबंध में आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है भारत जैसे देश में इस कानून को व्यावहारिक रूप में सही तरीके से लागू कर पाना काफी मुश्किल हो सकता है.