लालाराम (बदला हुआ नाम) बिजली बोर्ड में चपरासी से रिटायर्ड हो गया,पूरे जीवन भर अपने गाँव वालों के लिए हर सम्भव मदद व सहयोग करता रहा, गाँव से आने वालों को बिना चाय पिलाए भेजता ही नहीं मेलजोल व हँसमुख स्वभाव लालाराम के चरित्र में साफ झलकता था इधर हरियाणा कैडर में किसी जिले में कलेक्टर लगे हुए सत्यपाल सिंह (बदला हुआ नाम) भी पूर्णिया गाँव के ही थे,कभी अपने गाँव वालों के काम नहीं आए।
कभी समाज व मिलने जुलने वालों का सत्कार न किया बस अपनी मकड़ में ही रहे,कलेक्टर जो ठहरे, खैर सत्यपाल सिंह का रिटायरमेंट भी लालाराम के एक महीने बाद ही हो गया। संयोग देखिये दोनो बिहार के पूर्णिया जिले के बड़सर गांव के रहने वाले थे दोनो ही एक ही समाज से तालुक रखते थे। आज दोनो के घर के के बाहर चौपाल सजती है पर कलेक्टर साब के पास गिनती के लोग बैठते हैं जबकि लाला राम की चौपाल पर समाज, मिलने जुलने वाले व उसके हमउमरी साथी- संगी शोभा बने रहते हैं।
रिटायरमेंट के बाद कलेक्टर से बड़ा चपरासी नजर आ रहा है,,, ये जीवन का शास्वत सत्य है अधिकारी हो या कर्मचारी 60 के बाद उसी समाज मे लौट कर आना पड़ता है जिस समाज को वो दुत्कारता रहता है बस समाज भी इंतजार करता है कि एक बार कुर्सी से तो उठ तू तुझे सामाजिक ताने बाने से बुनी मुडड़ी भी नसीब नहीं होगी। ✒ Deepak Halve.