मजबूरी का नाम मनमोहन सिंह

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। जी हाँ ! कहावत बदल गई है बारू के बाद पारख की किताब ने सबसे ज्यादा जिसे उघाडा है, वे देश के बरायनाम प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह है |  सबको मालूम है की वे इसके बाद भी तब तक नहीं बोलेंगे जब तक की १० जनपथ से उन्हें आदेश न मिल जाये | सच में वे प्रधान सचिव के पद के हकदार भी नहीं है | बारू और पारख की किताबों के चंद पैराग्राफ भारत के प्रधानमंत्री पद के अवमूल्यन के दस्तावेजी प्रमाण बन गये हैं |

मनमोहन सिंह के  पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब `द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर` से सवालों के घेरे में खड़े प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस की मुश्किलें, आज पूर्व कोयला सचिव पी सी पारख की किताब से और बढ़ गई हैं । ये किताब यूपीए-2 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका के बारे में है।

अपनी किताब `क्रूजेडर आर कांस्पिरेटर: कोलगेट एंड अदर ट्रुथ` पारख ने लिखा है कि मनमोहन सिंह जिस सरकार के मुखिया थे उस पर उनका नियंत्रण बहुत कम था। हाल ही में आई एक और किताब ठीक इसी तरीके से मनमोहन पर निशाना साधती है। पीएम के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने भी मनमोहन को कमजोर पीएम करार दिया है।

पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख ने लिखा है कि मनमोहन सिंह जिस सरकार के मुखिया थे, उस पर उनका नियंत्रण बहुत कम था। पारख ने अपनी किताब में लिखा है कि १७  अगस्त २००५  को वे प्रधानमंत्री से मिलने गये । पारख उन्हें बताना चाहते थे  कि किस तरह से सांसद अधिकारियों का अपमान कर रहे हैं। तब  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी वेदना सामने रखते हुए कहा कि “मैं भी इसी समस्या से जूझ रहा हूं। लेकिन ये राष्ट्रहित में सही नहीं होगा कि ऐसे हर मुद्दे पर मैं त्यागपत्र देने की बात करूं|”

आज भी मनमोहन सिंह की वेदना यही है | जितना सहा उससे आधा भी न कहा |

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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