जबलपुर के वकील ने चुनाव आयोग से पूछा, जीते तो कौन सी सीट छोड़ेंगे मोदी?

shailendra gupta
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता नरेंद्र मोदी यदि वड़ोदरा और वाराणसी दोनों संसदीय क्षेत्रों में जीत हासिल कर लेते हैं तो वह किस क्षेत्र को अपने पास रखेंगे, इसको लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। मध्य प्रदेश के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से मोदी से यह सवाल पूछे जाने की अपील की है।

मोदी उत्तर प्रदेश की वाराणसी और गुजरात की वड़ोदरा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यदि वह दोनों स्थानों से चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें एक स्थान से इस्तीफा देना होगा, लिहाजा एक क्षेत्र में उपचुनाव कराया जाएगा।

सामाजिक कार्यकर्ता संजीव पांडे का कहना है कि अगर मोदी चुनाव से पहले अपनी प्राथमिकता वाले क्षेत्र का खुलासा नहीं करते हैं, और दोनों स्थानों से जीतने के बाद एक से इस्तीफा देते हैं तो यह संबंधित क्षेत्र के मतदाताओं के साथ विश्वासघात होगा।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 70 का हवाला देते हुए पांडे का कहना है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को इस बात की जानकारी होती है कि वह सिर्फ एक क्षेत्र का ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि हो सकता है, इस तरह एक से ज्यादा स्थानों पर जीत हासिल होने पर उसे अन्य से त्यागपत्र देना होता है।

पांडे का कहना है कि यह मतदाता का अधिकार है वह मतदान से पहले यह जान ले कि वह जिसे वोट करने जा रहा है वह क्षेत्र उम्मीदवार की प्राथमिकता है या नहीं।

उनका कहना है कि चुनाव आयोग उम्मीदवार के अतीत से संबंधित शपथपत्र मांगता है, जिसमें उससे जुड़े अपराध, संपत्ति, शिक्षा से संबंधित जानकारी रहती है, लेकिन यह नहीं पूछा जाता कि एक से ज्यादा स्थानों से चुनाव लड़ रहा है तो उसके लिए जीत के बाद कौन सा क्षेत्र उसकी प्राथमिकता में रहेगा।

जबलपुर उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजेश कुमार का कहना है कि चुनाव आयोग को भेजी गई शिकायत में कानूनी पक्ष को नहीं उठाया गया है, लेकिन सच्चाई यही है कि जनप्रतिनिधि मतदाता को अंधेरे में नहीं रख सकता। उम्मीदवार को यह भी बताना चाहिए कि वह चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र के मतदाताओं पर भरोसा क्यों नहीं कर रहा है।

वह आगे कहते हैं कि लोकतंत्र में मतदाता को यह पता होना चाहिए कि जो व्यक्ति उसका उम्मीदवार है वह निर्वाचित होने के बाद उनके बीच रहेगा या नहीं। उम्मीदवार का एक से ज्यादा स्थानों से चुनाव लड़ना और अपनी प्राथमिकता का खुलासा न करना धोखे से कम नहीं है। 


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