अंतत: शिवराज सिंह ने संभाल ही ली सुषमा की कमान

उपदेश अवस्थी/भोपाल। भाजपा की राष्ट्रीय नेता और लोकसभा में नेताप्रतिपक्ष सुषमा स्वराज की लड़खड़ाती नैया को अंतत: शिवराज सिंह चौहान ने संभाल ही लिया। जिस साधना सिंह को सीएम की पत्नि होने के कारण टिकिट नहीं दिया गया था, वही साधना सिंह सुषमा स्वराज की जीत का कारण बनेंगी।

भाजपा में सुषमा स्वराज वो नाम हुआ करता है जिसकी मदद से कई नेता लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीत जाते हैं परंतु इस बार विदिशा में सुषमा स्वराज को लोहे के चने चबाने पड़े। गांव गांव और गली गली में सुषमा स्वराज का स्वागत तीखे शब्दबाणों से किया गया। 2009 में जिन लोगों ने सुषमा स्वराज पर फूल मालाएं बरसाईं थीं, वही लोग इस बार सुषमा स्वराज से सवाल कर रहे थे और हालत यह कि सुषमा स्वराज के पास कोई जवाब ही नहीं था।

अपनी डूबती नैया के अनुमान भर ने सुषमा स्वराज को बुरी तरह भयभीत कर दिया था। सुषमा ने मदद के लिए दिल्ली से लेकर भोपाल तक हर कोने में आवाज लगाई। क्या यूपी, क्या हरियाणा और क्या दिल्ली देश भर के सुषमा स्वराज समर्थक देखते ही देखते विदिशा की सरजमीं पर आ पहुंचे परंतु इसके बाद भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा।

अंतत: सुषमा स्वराज को मदद के लिए शिवराज सिंह चौहान को बुलाना ही पड़ा। शिवराज सिंह चौहान ने अपने लोकसभा प्रचार अभियान में सबसे ज्यादा 17 सभाएं विदिशा में कीं। इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान की धर्म पत्नि जिन्हें धर्म पत्नि होने के कारण ही टिकिट नहीं दिया गया था, सुषमा स्वराज के प्रचार में घर घर संपर्क पर निकलीं और अंतत: स्थिति को नियंत्रण में लेकर ही दम लिया।

आज 22 अप्रैल को समाप्त हुईं सभाओं और रैलियों के बाद विदिशा का माहौल एक बार फिर पुराना पुराना सा दिखाई देने लगा। यहां भाजपा की जीत की बातें और दावे एक बार फिर सुनाई दे रहे हैं। हालांकि दिग्विजय सिंह की चाणक्य नीतियां कब क्या गुल खिलाएंगी कहा नहीं जा सकता परंतु अब जब कमान शिवराज सिंह चौहान के हाथ में है तो परिणाम क्या आएंगे यह कहने की जरूरत नहीं।

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