राकेश दुबे@प्रतिदिन। दिल्ली उच्च न्यायालय में देश के बड़े राजनीतिक दलों के खिलाफ एक छोटे राजनीतिक दल ने विदेशी स्रोतों से चंदा लेने के विरुद्ध मुकदमा किया हुआ है| मजे की बात तो यह है की मुकदमा करने वाले को भी विदेश से चंदा मिल रहा है और यदि पुष्ट समाचारों पर विश्वास करे तो अभी ही नहीं, न जाने कब से यह गोरखधन्धा चल रहा है|
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में राजनीतिक दलों को विदेशी स्रोतों से धन लेने की मनाही है| कांग्रेस भाजपा और अन्य दलों के अनुसार ये कंपनियां भारतीय हैं और चंदे के लेन-देन में किसी नियम का उलंघन नहीं हुआ है| कितना सही है, ये तो वे ही जाने| बहरहाल, यह मामला तो अब जांच के दायरे में है| लगातार महंगे होते जा रहे चुनाव के संदर्भ में बहुत मायने रखते हैं| ३०००० करोड रुपये के अनुमानित खर्च के साथ २०१४ के चुनाव अब तक के सबसे महंगा चुनाव होंगा|
नागरिकों से कर के रूप में वसूली गई राशि ही इस खर्च की पूर्ति करेगी| वैसे भी चुनाव खर्च के बडे हिस्से का कोई लेखा-जोखा नहीं होता| उल्लेखनीय है कि यूपीए मंत्रिमंडल ने अपने आखिरी अहम फैसलों में से एक में बडे राज्यों में एक प्रत्याशी द्वारा खर्च की सीमा ४० से बढा कर ७० लाख और छोटे राज्यों में २२ से बढा कर ५४ लाख करने का निर्णय लिया था| इसमें राजनीतिक दलों द्वारा किया जानेवाला खर्च शामिल नहीं है| राष्ट्रीय राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आयोग को दी गयी जानकारी के मुताबिक पिछले आठ साल में हुई कुल कमाई ४८९६ करोड. में ७५ फीसदी से अधिक बेनामी है|
इस बेतहाशा धन की आमद ने इस शंका को भी बल दिया है कि कहीं भारत से बाहर जानेवाला काला धन राजनीतिक चंदे के रूप में वापस तो नहीं आ रहा है| संदेह की सुई तब ओर इसे आधार देती है, जब कोई भी राजनीतिक दल काले धन की वापसी को घोषणा पत्र से आगे नहीं जाने दे रहा हो|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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