भोपाल। ड्रग किट आशा 'ए' और 'बी' की खरीदी में हुई गड़बड़ी के मामले में लोकायुक्त पुलिस ने बुधवार को पूर्व स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा व आईपीएस के संचालक अशोक नंदा सहित छह आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश कर दिया।
चालान में लोकायुक्त पुलिस ने कहा है कि नेप्च्यून रेमेडीज नामक जिस दवा फर्म के नाम से दवा सप्लाई की गई, उसके मालिक को किसी दवा का नाम तक नहीं मालूम। वह राजधानी के बाग दिलकुशा में अत्यंत दयनीय स्थिति में रहता है। उसके पास न तो कोई ऑफिस है, न कर्मचारी और न गोडाउन।
जहां कंपनी का गोडाउन होना बताया गया, वहां पिछले 15 सालों से चाय और फूलों की दुकान चल रही है। तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. शर्मा और संचालक एचआईपीएल एवं पूर्व संचालक मालवा ड्रग्स व इसोमेट्रिक्स अशोक नंदा ने मिलकर यह धांधली की थी। लोकायुक्त पुलिस ने बुधवार को प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजीव कालगांवकर की अदालत में पेश करीब 3800 पेज के चालान पेश किया।
धांधली के आरोपी
योगीराज शर्मा, पूर्व स्वास्थ्य संचालक
अशोक नंदा, आईपीएस संचालक
सत्येंद्र साहू, फर्म के संचालक (केवल कागजों में)
एमके नागेंद्रा, तत्कालीन जीएम, केएपीएल बेंगलुरू
दीपक नाईगांवकर, एजीएम केएपीएल बेंगलुरू
योगेश पटेरिया, छपाई, पेंटिंग का काम
सात करोड़ की गड़बड़ी सामने आई
जांच में सामने आया कि ड्रग किट आशा 'ए' और 'बी' की खरीदी में आरोपियों ने करीब 7 करोड़ रु. का भ्रष्टाचार किया। केएपीएल ने 24 दवाओं में से महज छह दवाएं सीपीएसयू की बनी हुई सप्लाई की। स्वयं की मात्र दो दवाएं ही किट में शामिल की।
नेप्च्यून रेमेडीज नामक फर्म सत्येंद्र साहू की प्रोप्रायटरशिप में बनवाई। फिर केएपीएल तथा नेप्च्यून रेमेडीज नामक फर्म के बीच दस्तावेज तैयार कर औषधी सप्लाई का अनुबंध कर लिया। केएपीएल को दिए गए क्रय आदेश की आड़ में ड्रग किट आशा 'ए' और 'बी' की कुल 24 दवाओं में से 18 दवाएं सामान्य दवा निर्माताओं से खरीद कर नेप्च्यून रेमेडीज के माध्यम से सप्लाई कर दी गई।
रकम निकालकर खाते बंद
सत्येंद्र साहू के नेप्च्यून रेमेडीज के नाम से महानगर नागरिक सहकारी बैंक, बैरागढ़ और पीएनबी, गोविंदपुरा में खाते खुलवाए। पीएनबी में नेप्च्यून रेमेडीज नाम का खाता सिर्फ 8 माह चला। महानगर बैंक में खोला गया खाता भी 17 महीने बाद ही बंद करवा दिया गया।
राजौरा-उपाध्याय को बनाया गवाह
एफआईआर में तत्कालीन आयुक्त स्वास्थ्य विभाग राजेश राजौरा (आईएएस) का नाम भी था। राजौरा पर लगे आरोप साबित नहीं हुए, लिहाजा उनका नाम हटा दिया गया। इसके बाद राजौरा और तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी, स्वास्थ्य एमएम उपाध्याय को गवाह बनाया गया।
यह है मामला
प्रदेश सरकार को 2006 में एनआरएचएम योजना के अंतर्गत औषधियों की किट खरीदी के लिए पहली किश्त के रूप में 23.34 करोड़ रुपए मिले थे। 7 अगस्त 2006 को केंद्र सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने 102 दवाओं की खरीदी के लिए प्रदेश सरकार को एक पत्र जारी किया। इन आरोपियों ने सत्येंद्र साहू के नाम से फर्म बनाई और फर्जी तरीके से करीब सात करोड़ की धांधली की। उन्होंने साहू को कंपनी का संचालक इसलिए बनाया, ताकि उन पर कोई आपराधिक जिम्मेदारी न आए।
कौन है योगीराज शर्मा
योगीराज शर्मा केवल पूर्व स्वास्थ्य संचालक ही नहीं है बल्कि ये उस जादूगर का नाम है जिसने मात्र 10 साल में इतना पैसा कमाया कि उसे रखने के लिए घर में जगह ही शेष नहीं रह गई थी। जब योगीराज शर्मा के घर छापा पड़ा तो गद्दे, तकिये, शौचालय और घर के हर कौने से नोटों के बंडल निकले थे। आयकर विभाग को पहली बार मध्यप्रदेश में किसी अफसर के यहां मिले नोटों को गिनने के लिए मशीनें लगानी पड़ीं थी।