भोपाल। राजधानी के आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने सवाल दागा है कि 2011 में आया व्यापमं परीक्षाओं को ऑनलाइन करवाने का प्रस्ताव किसके इशारे पर रोका गया। क्या इस प्रस्ताव को रोकने के पीछे कोई षडयंत्र छिपा था।
अपने ताजा अपडेट में अजय दुबे ने लिखा है कि जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव /सचिव के पास ही हमेशा आई टी विभाग रहता है उसे जबाब देना चाहिए कि आखिर क्यों मुख्यमन्त्री के तत्कालीन प्रमुख सचिव श्री दीपक खांडेकर जो कि आई टी विभाग के प्रमुख सचिव भी थे, ने व्यापम कि तत्कालीन अध्यक्ष रंजना चौधरी के परीक्षाओ को ऑनलाइन करवाने के प्रस्ताव दिनांक 13 नवंबर 2011 का सार्थक जबाब क्यों नहीं दिया था और उसे किसी के इशारे पर रोका ?
इसका जिक्र अध्यक्षा ने व्यापम कि बोर्ड बैठक दिनांक 24 मई 2012 कि कार्यवाही विवरण मैं किया था। यही अपराधी आई टी विभाग कल प्रदेश के लाडले अधिकारियो को खुश करने और औपचारिकता के लिए सम्मानित करेगा। एक पुरुस्कार ग्वालियर मै उस 'हमारी लाड़ली योजना' मैं आई टी का का बेहतर उपयोग के लिए कलेक्टर को दिया जायेगा जिसकी साईट मै हितग्राही के लिए पंजीयन करना असम्भव है।
दूसरा उदहारण लोक सेवा केन्द्र को आई टी अवार्ड देने का है मुझे समझ मैं नहीं आता कि इस लोक सेवा गारंटी एक्ट को लागू हुए तीन साल गए लेकिन कही भी भ्रस्टाचार समाप्त नहीं हुआ तो फिर इसे अवार्ड कैसे मिल रहा है . निर्लज्ज राज्य सरकार जो कल प्रदेश मै आई टी अवार्ड समारोह आयोजित कर रही है दुर्भाग्य से भारत कि इकलौती सरकार है जिसके मुख्यमन्त्री और मंत्रीगणों कि ईमेल आई डी या तो है नहीं या फिर अज्ञात है .
व्यापम को उच्चतम स्तर पर ही एक साजिश के तहत अपंग किया गया एवं पारदर्शिता कि महत्वपूर्ण जरुरत को कुचल दिया गया। भारत कि समस्त राष्ट्रीय स्तर कि परीक्षाये पिछले कई सालो से ऑनलाइन करवाई जा रही है तो फिर व्यापम को किसने इस व्यवस्था को अपनाने से रोका।