राकेश दुबे@प्रतिदिन। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे अपने “इलेक्ट्रानिक मीडिया” को कुचलने के बयान से पलट जरुर गये हैं, परन्तु अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने की तैयारी पूरे जोरों पर है| आपातकाल के दौरान चूँकि इलेक्ट्रानिक मीडिया के नाम पर आकशवाणी ही थी और वह भी सरकार के नियंत्रण में, सोशल मीडिया जैसी कोई चीज नहीं थी और प्रिंट मीडिया पर सेंसरशिप जैसी व्यवस्था कांग्रेस ने लागू की थी|
कई अख़बार बंद हो गये थे| कई नामचीन सम्पादक और पत्रकार जेल भेज दिए गये थे| उस सब की आहट फिर सुनाई दे रही है|
राजनीति में काम करने वाले अपने को आमजन से इतर मानने की गलतफहमी में हमेशा रहते हैं| कहकर पलटना और संवादकर्मियों पर नसमझी का आरोप लगाना एक फैशन हो गया है| सोशल मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर बड़े उद्द्योग घरनों के नियंत्रण से ज्यादा मुखर हुआ है| इसमें भडैती की गुंजाईश न के बराबर है| कुछ कमी हो सकती है पर, उनसे कम, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अख़बार निकालते है, फिर उसके नीचे उद्द्योग समूह बनांते है| कुछ उद्द्योग समूह अख़बार का मतलब अपनी लाइज्निग विंग से निकालते है| ऐसे लोग हर राजनीतिक दल को प्रिय भी है| संवाददाता से कहा हुआ ये मालिकों से बदलवा लेते हैं|
सोशल मीडिया का कोई मालिक नहीं है इसलिए अब यू ट्यूब, फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स में सरकारी दखल के लिए मंत्रिमंडल ने ”न्यू मीडिया विंग” की स्थापना को मजूरी दे दी है। इस मद में 22.50 करोड़ रुपये का शुरुआती बजट भी रखा गया है, जिसका पूरा खर्च मंत्रालय उठाएगा। मंत्रालय के मुताबिक इस विंग के अधिकारियों के पास दूरसंचार के आधुनिक उपकरण होंगे। संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी इसकी कमान संभालेगा। नई मीडिया विंग कंटेंट तैयार करने और उस पर नजर रखने और सोशल मीडिया पर चल रहे रुख का विश्लेषण करने का जिम्मा होगा।
बस मान लीजिये, सच के पर कतरने की भूमिका है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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