राकेश दुबे@प्रतिदिन। भोपाल जिले का एक गाँव है, हिनोतिया आलम| आज वहां के महाविध्यालयिन प्रथम वर्ष के छात्र के दिमाग में टी वी देखते हए एक प्रश्न आया कि “हम सांसद और विधायक क्यों चुनते हैं ?” उसने सांसद को, विधायक को फोन लगाकर उत्तर जानना चाहा, वो ही नहीं मिले और उत्तर भी नहीं मिला |
फिर उसने युवा मतदान की पैरोकार कांग्रेस के कार्यालय में भी फोन किया, वहां से जवाब मिला “फालतू बात के लिये टाइम नहीं है |” यह छात्र आगामी लोकसभा चुनाव २०१४ का मतदाता है और यह अधिकार उसे पहलीबार मिलने जा रहा है | उसने मुझे भी फोन किया | मैंने उससे प्रतिप्रश्न कर उसकी समझ को समझने का प्रयास किया |चुनाव के सम्बन्ध में यह आम मतदाता से कुछ ज्यादा ही जानता है , फिर प्रश्न उपस्थिति का प्रसंग जाना तो पता चला कि प्रश्न का उदभव संसद और विधानसभा के हंगामे की भेंट चदते सत्र हैं |
उसकी नाराजी [जिज्ञासा] संसद शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन भी लोकसभा में हुए हंगामे और स्थगन को लेकर थी | तेलंगाना मुद्दे पर आंध्र प्रदेश के दोनों हिस्सों के सांसदों ने जमकर हंगामा किया। नतीजतन, हंगामे के कारण कोई कामकाज नहीं हो सका और सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई।
इस दुर्घटना का मूल्यांकन यदि अर्थ शास्त्र की भाषा में करें तो, स्थगन के कारण सत्र के करीब 670 मिनट बर्बाद हुए हैं। इसके चलते आम जनता के करीब 6.75 करोड़ रुपए भी बर्बाद हो गए। संसद एक दिन में छह घंटे के लिए काम करती है। अनुमान के तौर पर संसद के दोनों सदनों को चलाने के लिए प्रति मिनट करीब 2.5 लाख रुपए की लागत आती है।
यही स्थिति विधानसभा के सदनों की है | इतने बड़े राजनीतिक दल और इतने बड़े नेता इस पर काबू क्यों नहीं कर पाते ? गभीरता से कोई सदन नहीं चल रहा है | टैक्स देने वालों के साथ अब आम मतदाता भी यही सोच रहा है | संसद और विधानसभा का गठन जनकल्याणकारी नीति और कानून बनाए के लिए होता है, हुडदंग और राजनीति करने के लिए बहुत अखाड़े हैं | इन सदनों को बख्शिए |