भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद अरूण यादव ने कहा है कि प्रदेश की भाजपा सरकार शुरू से ही कर्मचारी वर्ग के प्रति असंवेदनशील रही है।
उसने जहां एक ओर राज्य सरकार के कर्मचारियों के हक की 19 हजार रूपये की बकाया धनराशि दबा ली है-वहीं दूसरी ओर छह बिजली कंपनियों के 52 हजार कर्मचारियों की पेंशन, ग्रेज्युएटी और परिवार पेंशन की 4,494 करोड़ रूपये की रकम हजम कर ली है। सरकारी दस्तावेजों में इस रकम का लेखा जोखा गायब है। इस कारण इन कंपनियों के भविष्य में सेवा निवृत्त होने वाले कर्मचारियों के देय स्वत्वों के भुगतान के लिए गंभीर संकट पैदा होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। बिजली कंपनियों ने इसके लिए राज्य सरकार को जवाबदार बताया है।
उन्होंने कहा है कि यह चौंकाने वाला सच कैग की हाल ही में जारी रिपोर्ट में उजागर हुआ है। संभावित संकट से उबरने का कोई सुविचारित और व्यावहारिक रास्ता निकालने की बजाय राज्य सरकार गुपचुप तरीके से दो उपायों को अंजाम देती हुई दिखाई दे रही है। एक तो वह शनैः शनैः बिजली कंपनियों में टेक्नोक्रेट्स को बिठा रही है और दूसरा, 31 मार्च 2005 तक की जो 4,494 करोड़ की रकम सरकार ने दबा ली है, वह बिजली उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार डालकर जुटाने के बारे में विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष राकेश साहनी की मदद से अंदर ही अंदर प्रयास जारी है। दरअसल साहनी जब म.प्र. विद्युत मंडल के अध्यक्ष थे, उसी दौर में यह वित्तीय गड़बड़ी हुई है, जिसको बाद में ठीक करने की कोशिश सरकार के स्तर पर नहीं की गई।
श्री यादव ने कहा है कि बिजली कंपनियों के 52 हजार कर्मचारियों के हक की यह 4,494 करोड़ की धनराशि सरकारी दस्तावेजों से गायब है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि आगे के हालातों में अगर बिजली कंपनियां अपने अधीनस्थ कार्यरत कर्मचारियों को उनकी पेंशन और ग्रेज्युएटी के भुगतान से मुकर जाए तो कर्मचारियों के सामने तो आकस्मिक रूप से गंभीर आर्थिक संकट खड़ा जो जाएगा और वे सेवानिवृत्ति की घड़ी में कहीं के नहीं रहेंगे। इस संभावित संकट के लिए बिजली कंपनियों से अधिक दोषी राज्य सरकार है, जिसने कर्मचारियों को देय राशि का नियम के अनुरूप लेखा जोखा रखने की कोई व्यवस्था नहीं की।
उन्होंने कहा है कि कैग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005 के मार्च महीने तक बिजली कर्मचारियों की भविष्य में देयता की राशि 4,494 करोड़ रूपये होती है। इस पूरी रकम के किसी भी अंश को सरकार और कंपनियों ने वर्ष 2008 के अक्टूबर महीने तक जमा नहीं कराया। इसके अलावा कैग ने पाया है कि कर्मचारियों के स्वत्व की 263 करोड़ की अन्य रकम भी सरकारी दस्तावेजों से नदारद है। यह वह रकम है, जो अवकाश नकदीकरण के प्रावधान के तहत कर्मचारियों को भुगतान की जाती है।
प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष ने कहा है कि बिजली कंपनियों के गठन के समय सरकार ने वादा किया था कि वह वर्ष 2003 के स्तर पर जो पुरानी बकाया राशि है, वह वित्तीय पुरर्संरचना के तहत एक मुश्त स्वीकृत करेगी, किंतु बाद में वह अपने इस वादे से मुकर गई। नतीजन कर्मचारियों के हक की यह बड़ी रकम झमेले में पड़ गई है। आपने कहा है कि यदि बिजली कंपनियों के 52 हजार कर्मचारी इस स्थिति को लेकर सरकार और कंपनियों पर दबाव बनाने के लिए हड़ताल जैसा कोई रास्ता पकड़ लें तो प्रदेश में बिजली आपूर्ति पर गंभीर संकट खड़ा हो आ सकता है।
इन दिनों बिजली कंपनियों में जो कुछ चल रहा है, उससे लगता है कि प्रदेश में बिजली का प्रबंधन भगवान भरोसे चल रहा है। वर्तमान सरकार की रूचि तो केवल सस्ती बिजली बेचने और चहेती निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदने में दिखाई देती है।