बसों के परमिट का मामला जनहित से जुड़ा है: हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

ग्वालियर। कई साल से मप्र राज्य परिवहन बंद होने पर पड़ौस के अन्य प्रदेशों में जाने वाली बसों को पकड़कर सवारी उतार दी जाती है।

अंतर्राज्यीय मार्गों पर मध्यप्रदेश की प्रायवेट बसों के संचालक एसटीए (राज्य परिवहन प्राधिकार) से तीन-चार दिन का परमिट लेकर बसों का संचालन उ.प्र., राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखण्ड में करते हैं।

हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ ने प्रदेश सरकार के अलावा उक्त राज्यों की सरकारों को सूचना पत्र जारी करते हुये जबाब पेश करने के निर्देश दिये हैं कि मध्य प्रदेश की बसों को प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता। काउंटर साइन (परमिट पर हस्ताक्षर) क्यों नहीं हो रहे हैं ?

जस्टिस एसके गंगेले और जस्टिस डीके पालीवाल की युगलपीठ ने याची कश्मीरीलाल बत्रा की ओर से पेश जनहित याचिका जो अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गई है पर उक्त निर्देश दिये हैं। अब प्रायेवेट बसों के संचालकों को कुछ आस जगी है।

मध्य प्रदेश के अन्य राज्य में 68 रूठ हैं, इन पर बसों का संचालन होता था, निगम बंद होने पर वहां की सरकारों ने यहां के परमिट पर हस्ताक्षर करना बंद कर दिया है, उसके बाद से इन मार्गों पर बसों का संचालन बंद है। अन्य राज्यों में चैकिंग के दौरान बसें पकड़ी जाती हैं तो सवारियों को वहीं उतरना पड़ता है। अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने तर्क दिया कि प्रायवेट बस आॅपरेटरों की गाडि़यां बंद हो रही हैं यह प्रायवेट मामला है।


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