ऋषि पांडेय/भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा की जबरदस्त कामयाबी ने कांग्रेस की बुरी गत कर दी. भाजपा को विधानसभा चुनाव में 22 सीटों का लाभ हुआ वहीं कांग्रेस पिछले चुनाव से 13 सीटें पीछे रही. कहा जा सकता है कि भाजपा का शिवराज फैक्टर कांग्रेस के मजबूत किलों को ढहाने में सफल रहा.
मध्य प्रदेश में भाजपा ने न केवल अपनी सीटों में बढ़ोत्तरी की बल्कि वोट प्रतिशत में भी अच्छा खासा इज़ाफ़ा किया. उनका वोट प्रतिशत लगभग दस फीसदी तक बढ़ा है. भाजपा को इस बार 70 लाख नए वोटरों का साथ मिला. हालांकि वोट प्रतिशत तो कांग्रेस का भी बढ़ा, इसके बावजूद उन्हें सीटों का नुकसान झेलना पड़ा.
विधानसभा की कुल 230 सीटों के लिए भाजपा के 165, कांग्रेस के 58, बसपा के चार और अन्य तीन विधायक चुने गए. नई विधानसभा में पिछली बार ही की तरह इस बार भी महज एक मुस्लिम विधायक है. हालांकि कांग्रेस ने आठ और भाजपा ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को मौका दिया था.
विधानसभा में महिलाओं की संख्या जरूर बारह फीसदी रहेगी. भाजपा ने 28 महिलाओं को मैदान में उतारा था जिनमें 22 ने कामयाबी पाई जबकि कांग्रेस की 21 उम्मीदवारों मे छह को जीत मिली.
मप्र में कांग्रेसी नेता अजय सिंह के विंध्य क्षेत्र में ही पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा
गौर करने वाली बात ये भी है कि पहली बार चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराया गया नोटा कितना प्रभावी रहा. आंकड़ों के अनुसार राज्य के पौने दो फीसदी मतदाताओं यानी छह लाख बीस हजार ने किसी को भी वोट के योग्य नहीं पाया. इन मतदाताओं ने ईवीएम मशीन में नोटा बटन का इस्तेमाल किया.
इस बटन ने आधा दर्जन से ज्यादा उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ा. मसलन ग्वालियर-पूर्व विधानसभा सीट से भाजपा की माया सिंह 1,147 मतों से जीतीं. यहां 2,112 वोटरों ने नोटा का इस्तेमाल किया, इनमे से आधे वोट भी कांग्रेस उम्मीदवार को मिलते तो परिणाम बदल जाता. यही हाल सुरखी विधानसभा क्षेत्र में हुआ. यहां कांग्रेस के गोविंद सिंह 1,41 वोटों से हारे जबकि नोटा बटन दबाने वालों की संख्या 1,550 थी.
कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के प्रभाव क्षेत्रों में पार्टी खास प्रदर्शन नहीं कर पाई. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाले जिले राजगढ़ की पांच में चार सीटों पर भाजपा सफल रही. हां, उनके पुत्र जयवर्धन जरूर चुनाव जीतने में सफल रहे.
केन्द्रीय मंत्री और क्लिक करें मध्यप्रदेश में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने प्रभाव के क्षेत्र ग्वालियर-चंबल संभाग में पार्टी को करीब एक-तिहाई के आसपास सीटें जिता पाए. यहां 34 सीटों में कांग्रेस को महज 12 सीटों पर जीत मिली. जबकि कांग्रेस को इस क्षेत्र से बड़ा भरोसा था. यहां से इस बार भाजपा को सात सीटें ज्यादा मिली हैं.
केंद्र के ताकतवर मंत्री कमलनाथ का किला कहे जाने वाले महाकौशल में सेंध लग गई. वहां भाजपा बेहतर साबित हुई. भाजपा को यहां 24 और कांग्रेस को 13 सीटें मिलीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के संसदीय क्षेत्र झाबुआ में तो कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई.
मध्य प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने जरूर कांग्रेस की लाज रखी. उनके क्षेत्र विंध्य में कांग्रेस पिछली बार के मकाबले मजबूत बनकर उभरी. पिछली बार विंध्य में कांग्रेस को 30 में महज दो सीटें मिली थीं जबकि इस बार उसे यहां 12 सीटें मिली हैं.