मध्यप्रदेश में रॉयल फैमिली से कुल 12 प्रत्याशी मैदान में थे। 8 भाजपा के टिकट पर और 4 कांग्रेस के टिकट पर।
भाजपा के सभी 8 प्रत्याशी
- यशोधरा राजे सिंधिया शिवपुरी से,
- माया सिंह ग्वालियर पूर्व से,
- तुकोजी राव पंवार देवास से,
- मानवेन्द्र सिंह महाराजपुर से,
- दिव्याराजा सिंह सिरमौर से,
- हर्ष कुमार सिंह रामपुर बघेलन से,
- विजय शाह हरसूद से और
- संजय शाह टिमरनी से शानदार जीत हासिल करके भोपाल गए।
वहीं कांग्रेस से भी राघोगढ़ से जयवर्धन सिंह के अलावा विक्रम सिंह नाती राजा राजनगर से, महेंद्र सिंह कालूखेडा मुंगावली से विपरीत परिस्थितियों मे भी जीत कर आये। सिर्फ खिलचीपुर से प्रियव्रत सिंह खीची ही रॉयल फैमिली के सदस्यों में एक ऐसे प्रत्याशी रहे जो कांग्रेस से चुनाव लड़कर भाजपा का झंझावत नहीं सह पाए हार गए।
बहरहाल गुना जिले के जयवर्धन सिंह इन सबमें सबसे युवा हैं और राजनीति की पथरीली राह में उतर चुके हैं। राघोगढ़ विधानसभा के अगले पांच साल एक नवयुवा संभालेगा। उनकी सरपरस्ती के लिए एक वटवृक्ष दिग्विजयसिंह के रूप में मौजूद है।
जहां तक दिग्विजय सिंह का सवाल है, तो बताना लाज़मी होगा कि जनता पार्टी का तूफान 1977 के विधानसभा चुनाव में इतना ज़बरदस्त था कि 320 सीटों में से 230 सीटें उसके क़ब्ज़े में आ गई थीं। कांग्रेस कुल 84 सीटों पर सिमट के रह गई थी। गुना ज़िले की 6 सीटों में से 5 जनता पार्टी के खाते में गई थी।
वो ऐसी आंधी थी कि उसमें गुना से धर्मस्वरूप जी, चाचोडा से कृष्णवल्लभ जी, शाढोरा से हरलाल जी, अशोकनगर से चिमनलाल जी और मुंगावली से चंद्रमोहन जी जनतापार्टी का झंडा हाथ में लिए विधानसभा भवन पहुंचे थे।
पूरे जिले में सिर्फ राघोगढ़ अकेली ऐसी सीट थी जिसमें जनता पार्टी की ज़बरदस्त आंधी के बावजूद कांग्रेस का एक दीया टिमटिमा रहा था। उस वक़्त दिग्विजय सिंह का कोई सरपरस्त नहीं था और राघोगढ़ की जनता को भी उस वक़्त उनसे इतनी उम्मीदें नहीं थीं क्यूंकि सरकार जनता पार्टी की थी।
आज जयवर्धन सिंह ऐसे वक़्त में विधायक बने हैं जब भाजपा की आंधी ने बड़े बड़े पेड़ उखाड़ दिए हैं। राघोगढ़ की अपेक्षाएं जयवर्धन सिंह से कुछ ज़्यादा ही हैं बनिस्बत 1977 वाले दिग्विजय सिंह से। सरकार भाजपा की है। जयवर्धन सिंह का कार्यकाल देखना दिलचस्प होगा।
नूरुल हसन नूर,
गुना