इंदौर। जैन संतों पर होने वाले खर्च को लेकर चल रहे विवाद के बीच एक नया मोड़ आ गया है। समाज का एक धड़ा इसको लेकर नाराज है कि पुलक चेतना मंच ने गणाचार्य विराग सागर महाराज को उनके संघ के साथ बीच रास्ते में ही छोड़ दिया।
मंच पर आरोप है कि विवाद के बाद उन्होंने संतश्री के लिए अपना सामान तक नहीे छोड़ा। हालांकि मंच के कर्ताधर्ता इसका खंडन कर रहे हैं।
संतों की अगवानी और उनके चातुर्मास पर होने वाले भारी-भरकम खर्च को लेकर जैन समाज के दो धड़ों में लम्बे समय से विवाद चल रहा है। शुरूआत विरागसागर महाराज के चातुर्मास से हुई थी और ताजा विवाद भी उनसे ही जुड़ा हुआ है। जैन समाज में इस बात को लेकर रोष है कि मंच ने विरागसागर महाराज को उनके तीर्थस्थल तक नहीं छोड़ा। चर्चा है कि चातुर्मास खत्म करने के बाद महाराजजी को उनके तीर्थ स्थल पथरिया तक छोड़ना था, जिसका जिम्मा आयोजकों का ही था।
संतश्री विदिशा तक तो पहुंचे, लेकन वहां आयोजकों से उनका कोई विवाद हो गया, जिसका कारण आयोजनों पर होने वाले खर्च को लेकर था। स्थितियां कुछ ऎसी बनी की मंच ने संतश्री को वहीं छोड़ दिया और वापस लौट आए। मामले की जानकारी जब समाजनों को लगी तो मंच के खिलाफ आवाज उठने लगी।
विवाद के चलते संतश्री ने विदिशा नहीं छोड़ा है। सूत्रों के अनुसार संतश्री यहां करीब 1 जनवरी तक रूकेंगे। सामान्यतह चातुर्मास खत्म करने के बाद संत सीधे अपने तीर्थस्थल पर ही जाते हैं। सूत्रों का कहना है, विवाद के चलते संतश्री को मजबूरी में विदिशा में रूकना पड़ रहा है।
पहली प्रतिक्रिया
गुरू तो भगवान से बढ़कर होते हैं। ऎसे में गणाचार्य विराग सागरजी को विदिशा में ही छोड़कर आना शर्मनाक है। पुलक चेतना मंच की जिम्मेदारी थी कि वे संतश्री को उनके तीर्थस्थल तक छोड़ कर आए। मंच का यह कहना भी गलत है कि हमने एक महीने का विराह लिया था और समय खत्म हो जाने पर हम लौटे। गुरू के आगे समय का क्या महत्व? यह तो संतश्री के साथ ही समाज की भावनाओं का अपमान है।
कपूरचंद्र जैन, नंदानगर जैन मंदिर