भोपाल। नि:शक्त जनों के लिए रोजगार को लेकर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अहम फैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह नि:शक्त जनों के लिये जून 2014 तक जारी विशेष भर्ती अभियान के तहत इस श्रेणी के प्रत्येक उम्मीदवार को उसकी काबिलियत के मुताबिक रोजगार प्रदान करे।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति एनके मोदी ने दृष्टिबाधित शख्स निलेश सिंघल की याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार चार दिसंबर को यह आदेश सुनाया. इसके साथ ही कहा कि यह निगरानी रखने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव की होगी कि विशेष भर्ती अभियान के तहत हरेक योग्य नि:शक्त उम्मीदवार को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है या नहीं.
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 12 बिंदुओं वाले आदेश में कहा कि अगर प्रदेश सरकार जून 2014 या इससे पहले अपने विशेष भर्ती अभियान के तहत सभी योग्य नि:शक्त उम्मीदवारों को रोजगार देने में नाकाम रहती है, तो उसे इस श्रेणी के उन उम्मीदवारों को भत्ता देना होगा जो नि:शक्त जन अधिनियम की धारा 68 के मुताबिक रोजगार कार्यालय में पंजीकृत हैं. यह भत्ता दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन के बराबर होगा.
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा विज्ञापनों के जरिये नौकरियों के आवेदन बुलाने पर आयोग के अफसरों की जिम्मेदारी होगी कि इन रोजगारों के दो प्रतिशत पद नि:शक्त जनों की प्रत्येक श्रेणी के लिये आरक्षित हों.
सिंघल के वकील अनिल त्रिवेदी ने बताया कि उनके दृष्टिबाधित मुवक्किल ने प्रदेश सरकार द्वारा नि:शक्त जनों को रोजगार देने में तय नियम-कानूनों का उचित पालन नहीं किये जाने का मुद्दा उठाते हुए उच्च न्यायालय की शरण ली थी.
त्रिवेदी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने सिंघल की याचिका पर पारित आदेश में इस बात का भी उल्लेख किया है कि दृष्टिबाधित पीएचडी धारक डॉ. फातिमा जमाली (33) को नौकरी की मांग को लेकर इंदौर में संभाग आयुक्त कार्यालय के सामने अगस्त में आमरण अनशन पर बैठना पड़ा था.
उन्होंने कहा, ‘उच्च न्यायालय के विस्तृत आदेश से खासकर उन दृष्टिबाधित और मूक-बधिर उम्मीदवारों के लिये उचित रोजगार पाने का कानूनी रास्ता खुल गया है, जो तमाम योग्यताओं के बावजूद बरसों से नौकरी की बाट जोह रहे थे.’