प्रत्याशियों के प्रचार अभियान पर सेंसरशिप लागू लेकिन एक ताजा सवाल

भोपाल। चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के प्रचार अभियान पर सेंसरशिप लागू कर दी है अब उन्हें कोई भी विज्ञापन जारी करने से पहले एमसीएमसी से अप्रूव्ड कराना होगा तभी वो विज्ञापन जारी हो सकेंगे परंतु इस निर्देश में यह नहीं बताया कि यदि एमसीएमसी ने निर्णय में देरी की तो क्या होगा।

भोपाल में विधान सभा निर्वाचन-2013 के लिए गठित जिला स्तरीय मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनीटिरिंग समिति की बैठक आज जिला पंचायत के सभाकक्ष में समिति के नोडल अधिकारी डॉ.जे.पी.दुबे की अध्यक्षता में संपन्न हुई।  बैठक में  अपर कलेक्टर श्री सुभाष द्विवेदी सहित तीनों विधान सभा के रिटर्निंग आफीसर, सहायक व्यय प्रेक्षक एवं समिति के सदस्य उपस्थित थे।

बैठक में बताया गया कि विधान सभा लड़ने वाले प्रत्याशियों द्वारा अपने प्रचार के संबंध में कोई भी विज्ञापन जारी करने के पूर्व उसका अनुमोदन समिति के द्वारा कराया जायेगा तथा यदि समिति उनके विज्ञापन में कोई सुधार करवाना चाहेगी तो सुधार के पश्चात ही अनुमोदन किया जायेगा।

श्री दुबे ने जानकारी देते हुए बताया है कि गठित समिति समाचार पत्रों एवं केबल टी.व्ही. पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों पर भी नजर रखेगी तथा प्रसारित विज्ञापन के संबंध में संबंधित रिटर्निंग आफीसर्स एवं सहायक व्यय प्रेक्षक को सूचित करेगी।  इसी प्रकार समाचार पत्रों में प्रकाशित पेड न्यूज की भी प्रतिदिन मॉनीटिरिंग की जायेगी तथा उसकी कटिंग भी संबंधितों को कार्रवाई के लिए प्रेषित की जायेगी।

अभ्यर्थी के द्वारा अनुमोदन के लिए प्रस्तुत विज्ञापन में समिति निर्धारित समयावधि में निर्णय लेकर अभ्यर्थी को संशोधन के लिए उपलब्ध करायेगी या स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करेगी। आवेदन अस्वीकृत किये जाने की स्थिति में अभ्यर्थी जिला स्तरीय समिति के निर्णय के विरूद्ध राज्य स्तरीय समिति में तथा राज्य स्तरीय समिति से भी अस्वीकृत होने की स्थिति में भारत निर्वाचन आयोग को अपील कर सकेंगे।

सिर्फ एक सवाल

चुनाव में 'तत्काल' शब्द सभी के साथ लगा होता है, इधर प्रशासन तो उधर प्रत्याशी सभी को सबकुछ तत्काल ही चाहिए होता है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि प्रत्याशी अपने प्रचार अभियान को एमसीएमसी के समक्ष क्या 24 घंटे में कभी भी प्रस्तुत कर सकता है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि यदि एमसीएमसी किसी प्रत्याशी विशेष के प्रचार अभियान को स्वीकृत करने के बजाए प्रक्रिया में समय बिताने का प्रयास करे तो ऐसे में प्रत्याशी के पास क्या अधिकार होंगे। क्या वो सिर्फ इंतजार ही करता रहेगा या समिति को भी तय समय सीमा में निर्णय करने के लिए पाबंद किया जाएगा।

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