लो फिर चुनाव फिर आ गए, पर बिजली नही आई

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गैरतंगज।राकेश गौर। विधानसभा चुनाव तो फिर आ गए लेकिन बिजली नही आई। चुनावों में बडी बडी पार्टीयों के नेता ग्राम के विकास की बडी बडी बाते करते है परन्तु चुनाव जीतने के बाद कोई नही आता। यह व्यथा तहसील से लगभग 13 कि0मी0 की दूरी पर ग्राम पंचायत सर्रा के ग्राम सुआगढ के आदिवासी लोगो की है।

यहां के रहवासी स्वतत्रंता के बाद से अब तक मूलभूत सुविधाये जैसे बिजली, पानी, सडक से वंचित होकर नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे है।वही 2009 के विधानसभा चुनाव के बाद फिर चुनावों का आगाज हो गया परन्तु ग्राम का विकास किसी भी पार्टी के नेताओं या सत्तापक्ष द्वारा नही कराया गया।

तहसील के सबसे पिछडे ग्रामों में गिना जाने वाना ग्राम सुआगढ में लगभग 40 परिवार में 300 लोगो का यह वनग्राम पूरा का पूरा अदिवासी वाहुल्य ग्राम है। इस ग्राम के बच्चे षिक्षा प्राप्त करने के दिनो में ही मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण में लग जाते है। जबकि गांव की महिलाये भी मजदूरी में परिवार का हाथ बटांती है।

पूरे गांव में किसी ने भी अपने पूरे जीवन में न तो बिजली देखी ओर न ही सडक। जनपद पंचायत गैरतगंज के अंतर्गत आने वाले घने जंगलों के बीच बसे वनग्राम सुआगढ की इस दुर्दशा का विस्तृत हाल ग्राम के ही आदिवासियो ने बयां किया। उन्होने बताया की हमारा गांव गैरतगंज तहसील का सबसे बडा आदिवासी बहुल्य ग्राम है।हम लोगो तक किसी भी माध्यम से से शासन की मूलभूत सुविधाये नही पहुंच पाती है। ग्राम में बिजली, पानी एवं सडक जैसी सुविधाएं नही है।

वही ग्राम में एक ही हेण्डपंप चालू अवस्था में है जिससे पानी के लिये घंटो लाईन में खडे होकर पानी नसीब हो पाता है। जहां आधुनिकीकरण एवं इलेक्ट्रोनिक के इस दौर में जहां भारत कम्प्यूटर जैसी मशीनों से कई बडे काम चुटकियो में कर देश को विकास की ओर तेजी से ले जा रहा है। वही निचले स्तर पर विकास की बानगी भी सुआगढ ग्राम में देखने को नही मिल रही है।

ग्राम पंचायत भी नही लेती कभी सुध

ग्राम पंचायत सर्रा ने भी आदिवासी बाहुल्य ग्राम के विकास के लिये आज दिन तक कोई कार्य नही कराये। पंचायत द्वारा न तो कुटीर दिये गये और न ही पानी,सडक की समुचित व्यवस्था की गई है इस ग्राम के कई परिवारांे के पास गरीबी रेखा के राषन कार्ड भी नही है। पंचायत द्वारा इन आदिवासी गरीब तबके के कुछ भूमिहर लोगो को षासन की महत्वपूर्ण योजना रोजगार गांरटी योजना के अंतर्गत आने वाले कई कार्यो जिनमें कपिल धारा के तहत कुआं ,मेढ बंधान जैसी सुविधाएं नही दी गई। ग्राम पंचायत द्वारा भी इस ग्राम के  के लोगो को उसी के हाल पर छोड दिया है। इस ग्राम की सुध लेने क्षेत्र से चुने गये जनप्रतिधियो में सासंद,विधायक तो दूर ग्राम सरंपच भी नही पहुंचते। ग्रामवाासियों ने बताया कि वन क्षेत्र होने के कारण जंगली जानवरो के प्रकोप उनके बच्चों एवं उनकी फसलों पर बना रहता है।

बिजली की जगह सौर उर्जा उपकरण बने शोपीस

ग्राम सुआगढ में बिजली न होने के कारण 10 साल पहले वन विभाग द्वारा सौर उर्जा के उपकरण ग्रामीणो के मकानो में इस उददेष्य से लगवाये थे कि बिजली की कमी से जूझ रहे इस ग्राम में लोग भी लाभ ले सके। और कही न कही तक अपने पिछडेपन को दूर कर सके। लेकिन यह उपकरण भी देखरेख के आभाव में उसी समय कुछ दिन चलकर शोपीस बनकर रह गये।और पूरा गाॅव अंधेरे से आज भी जूझ रहा है।बिजली न होने से ग्राम में रोजमर्रा के काम हाथो से ही किये जाते है यहाॅ की महिलाये हाथो से ही आटा पीसती है और बिजली न होने से बच्चे पढाई से भी मोहताज हो जाते है।वही पूर्व में रहे कलेक्टर ने भी इस ग्राम के विकास एवं इन परिवार के उत्थान के लिये गोद लिया था परन्तु कलेक्टर के स्थानांतरण के बाद विकास रुक गया।

बारिश में निकलना हुआ दूभर

ग्राम सुआगढ में बारिश के मौसम में घर से निकलना दूभर हो जाता है। कई कई माह तक ग्रामीण शहरी क्षेत्र में आने में भारी परेशानियों का सामना करना पडता है। जिससे ग्रामीणों के रोजमर्रा के कार्य प्रभावित होते है। स्कूली छात्र छात्राओं की पढाई में बाधा पहुंचती है। सडक के आभाव में वाहनों का आवागमन भी प्रभावित हो जाता है।

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