ऐसी आचार संहिता को मैं ठोकर मारता हूं: कैलाश विजयर्गीय

भोपाल। हमेशा चर्चा में बने रहने के लिए मशहूर मध्यप्रदेश के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने हाल ही आदर्श चुनाव आचार संहिता को लेकर बवाल खडा किया है। उनकी ये बयानबाजी भी शायद प्रचार पाने का ही तरीका है।

ज्ञात रहे, चुनाव आयोग ने आचार संहिता का हवाला देते हुए नेताओं के धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में जाने पर परोक्ष रूप से बंदिश लगाई है। आचार संहिता के तहत वे इन कार्यक्रमों में जा तो सकते हैं, लेकिन उनके हर काम की बारीकी से निगरानी की जाएगी और यदि ऎसा पाया गया कि उनका कोई भी कृत्य चुनाव या वोट की राजनीति से जुडा है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यानी नेता न तो ऎसे कार्यक्रमों में मंच पर जा सकते हैं, न माला पहन सकते हैं, न कोई अपील या घोषणा कर सकते हैं। इसी सख्ती के चलते मध्यप्रदेश में ज्यादातर नेता दशहरे पर रावण दहन कार्यक्रमों में केवल दर्शक की हैसियत से शामिल हुए।

हुआ यूं कि पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कैलाश विजयवर्गीय कैमरे पर कुछ लडकियों को 100-100 रूपये की नोट बांटते देखे गए। उन्होंने अपनी सफाई में कहा है कि भावी चुनाव के लिए वह वोटों को खरीद नहीं रहे थे। उनका यह भी तर्क है कि वह आगे चुनाव नहीं लडेंगे। इसकी चुनाव आयोग में शिकायत हुई। उस शिकायत का निराकरण अभी होना बाकी है। इस बीच कैलाश विजयवर्गीय ने राजपूत समाज के कार्यक्रम में यह कह दिया कि जो संहिता सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनने से रोकती है ऎसी आचार संहिता को मैं ठोकर मारता हूं। लेकिन कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में ऎसे आयोजनों में भाग लेते हुए चुनाव आयोग को यह कहते हुए चुनौती दे डाली कि जो संहिता उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करने से रोके उसे वे नहीं मानते। कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि नवदुर्गा पर कन्याओं को भोज कराना और उन्हें भेंट देना परंपरा है और वे कोई नई बात नहीं कर रहे।

त्योहारों पर घर के सामने या कार्यक्रमों में ढोल बजाने वालों को नेग या बख्शीश देने की परंपरा है। यदि वे ऎसा करते हैं तो अपनी परंपराओं का ही पालन कर रहे हैं किसी संहिता का उल्लंघन नहीं। चुनाव आयोग को लगता है कि उन्होंने कोई अपराध किया है तो वह उन्हें चुनाव ल़डने से रोक दे, लेकिन वे अपनी परंपराओं का पालन करने से पीछे नहीं हटेंगे। ऎसे में कैलाश विजयवर्गीय का बयान पूरी बहस की मांग करता है। दरअसल संहिता की मूल भावना यह है कि चुनाव के दौरान धर्म, जाति या समाज के आधार पर न तो वोट मांगे जाएं और न ही उस आधार पर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोई कोशिश हो। इसका सख्ती से पालन भी होना चाहिए।


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