भोपाल। अपने बेटे जयवर्धन का टिकिट फाइनल कराने के बाद दिग्विजय सिंह ने सभी समर्थकों से स्पष्ट रूप से कह दिया है कि अब में किसी भी टिकिट के लिए सिफारिश नहीं करूंगा। अब यह उन्होंने स्वेच्छा से कहा या मजबूरी में यह तो वो ही जानें परंतु उनके समर्थकों की बेचैनी बढ़ गई है।
कांग्रेस की प्रदेश चुनाव समिति द्वारा टिकट को लेकर की गई सिफारिशों पर केन्द्रीय छानबीन समिति में मंथन चल रहा है। छानबीन समिति पिछले दो दिन से एक-एक सीट पर एक नाम के लिए मशक्कत कर रही है। कांग्रेस महासचिव मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता वाली इस समिति में केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह, महासचिव मोहन प्रकाश, सचिव संजय निरुपम, राकेश कालिया के अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ही सदस्य हैं।
ऐसे में सिंगल नाम तय करने के लिए मिस्त्री और मोहन प्रकाश को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। राय-मशवरे के लिए उन्हें वरिष्ठ नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य को भी बुलाना पड़ रहा है।
दिल्ली में बैठक के दौरान आज मोहन प्रकाश ने कुछ सीटों पर रायमशविरा के लिए इन दिग्गजों को बुलाया, कमलनाथ और सिंधिया के अलावा दिग्विजय भी पहुंचे। बताया जाता है कि दिग्विजय करीब 20 मिनट ही बैठक में रहे। उन्होंने कहा कि भोपाल यात्रा के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ कहा था कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस में 6 बड़े नेताओं की बपौती नहीं है, नेताओं की बदौलत कांग्रेस हारती है, वे टिकट के लिए अपने समर्थकों के नाम दे देते हैं, जो टिकट की सिफारिश करते हैं, उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। यही नहीं दिग्विजय का कहना था कि इसलिए वे किसी भी नाम पर चर्चा नहीं करेंगे। सर्वे रिपोर्ट और नीचे से आए नामों के आधार पर ही टिकट तय होने चाहिए।
सूत्रों के अनुसार दिग्विजय की इस बात से बैठक में सन्नाटा छा गया। दिग्विजय ने मीडिया से भी यह बात दोहराई कि वे टिकट के लिए किसी की सिफारिश नहीं करेंगे। दिग्विजय के इस रुख से उनके समर्थकों में निराशा हैं। वहीं प्रदेश कांग्रेस में भी हड़कंप की स्थिति है। क्योंकि दिग्विजय का प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण रौल है। कांग्रेस आलाकमान ने चुनावों से संबंधित ज्यादा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कमलनाथ को समितियों का समन्वयक और ज्योतिरादित्य को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर सौंपी है। ऐसे में दिग्विजय के रुख के कुछ अलग मायने भी निकाले जा रहे हैं।
कहीं ये बगावत की शुरूआत तो नहीं, या फिर ब्लेकमेलिंग