स्वशासी कॉलेजों को मिलेगा विश्वविद्यालय का दर्जा

भोपाल। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा तैयार राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) ड्राफ्ट को हाल ही में केंद्रीय स्तर पर कैबिनेट से शुरुआती मंजूरी मिल गई है। इससे अब मध्यप्रदेश के स्वशासी कॉलेजों को विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने का रास्ता साफ हो गया है। 12वीं पंचवर्षीय योजना में स्वशासी कॉलेजों को चिह्नित कर उन्हें विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। वहीं, बेहतर सुविधा वाले कॉलेजों को मॉडल कॉलेज में तब्दील किया जाएगा।

उच्च शिक्षा विभाग ने ड्राफ्ट की कॉपी मिलने के बाद अपनी तरफ से इस बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि, प्रदेश के 18 स्वशासी कॉलेजों में से कितनों को विश्वविद्यालय का दर्जा मिलेगा, इसका फैसला उनकी ताजा स्थिति का अध्ययन करने के बाद ही लिया जाएगा। राजधानी के तीन स्वशासी कॉलेजों में से शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या पीजी महाविद्यालय की संभावना सबसे अधिक है।

यह कॉलेज बाकी दो कॉलेज शासकीय एमएलबी व शासकीय गीतांजलि महाविद्यालय के मुकाबले सभी सुविधाओं में संपन्न है। आयुक्त उच्च शिक्षा वीएस निरंजन ने रूसा का ड्राफ्ट मिलने की पुष्टि की है। साथ ही उन्होंने इस दिशा में आगे की कार्रवाई करने में थोड़ा समय लगने की बात भी कही। यह योजना वर्ष 2012 से 2017 के बीच लागू होनी है।

एक विवि से 100 कॉलेज होंगे संबद्ध

दरअसल, यूजीसी ने उच्च शिक्षा की गुणवता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान का ड्राफ्ट तैयार किया है। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों की संख्या को कम करना तथा एक विश्वविद्यालय से केवल 100 कॉलेजों को ही संबद्ध किया जाना है। यह पहला मौका है, जब इस तरह की कोई पहल की जा रही है। यूजीसी ने देश के सर्वाधिक संबद्ध कॉलेजों वाले जिन 20 विश्वविद्यालयों की सूची जारी की है, उसमें प्रदेश के दो विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।

इनमें एक राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) व दूसरा बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) है। खुद उच्च शिक्षा विभाग की वार्षिक रिपोर्ट 2012-13 के अनुसार प्रदेश में आरजीपीवी के अलावा बीयू व जीवाजी विवि ग्वालियर ही ऐसे हैं, जिनसे 200 से ज्यादा कॉलेज संबद्ध हैं। केवल डॉ. हरि सिंह गौर विवि सागर से ही सबसे कम कॉलेज संबद्ध हैं।

उच्च शिक्षा परिषद का होगा गठन

इस अभियान को लागू करने के लिए राज्य उच्च शिक्षा परिषद का गठन किया जाएगा, जो राज्य व केंद्र के बीच के अंतर को कम करेगा। इसका काम अभियान के तहत शिक्षण संस्थाओं को दिए जाने वाले अनुदान पर भी नजर रखना होगा। यह परिषद एक तरह से ऑटोनोमस बॉडी होगी। 

जानकारों का कहना है कि एक विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों की संख्या अधिक होने से कई परेशानियां आती हैं। पहले तो परीक्षाएं समय पर नहीं हो पातीं। रिजल्ट तैयार करने में भी काफी समय लगता है। पढ़ाई की गुणवत्ता भी काफी हद तक प्रभावित होती है। इसका सीधा असर छात्रों के कॅरियर पर पड़ता है। इसके अलावा कॉलेजों को मिलने वाला अनुदान भी काफी कम होता है।


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