राकेश दुबे@प्रतिदिन। केन्द्रीय इंटेलिजेंस ब्यूरो का देश में उपद्रव होने के अनुमान सही निकल रहे हैं| अपेक्षाकृत शांत समझे जाने वाले मध्यप्रदेश के एक जिले हरदा के खिरकिया में कल से कर्फ्यू लगा हुआ है| उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर के रक्तरंजित समाचारों की सुर्ख़ियों ने राजनीतिक मोड़ ले लिया है|
इस धारणा की पुष्टि के लिए अब किसी अन्य परीक्षण की जरूरत नहीं है कि “कुर्सी के लिए जाने का रास्ता खूनी इबारतों से गुजरता है|” जहाँ प्रजातंत्र नहीं है वहां इस खेल में नेताओं की नजरबंदी से हत्या तक का इतिहास है| भारत जैसे प्रजातंत्र में अब चुनाव के दौरान जनता का खून बहाने का प्रयोग हो रहे हैं|
चुनावी प्रक्रिया के दौरान 90 के दशक में जिस साम्प्रदायिकता को हाशिये पर धकेल दिया गया था, अब वह अपने विकराल रूप में वापिस लौटती दिखाई दे रही है| मध्यप्रदेश के इंदौर, असम के सिलचर,जम्मू के किश्तवाड़, बिहार के नवादा,उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर में विषय से कई गुना बड़े आकार में उपद्रव हुए और चुनाव तक उनमें हवा भरकर उन्हें और बड़ा करने की कोशिशें जारी हैं|
वोट का गणित इस सबके पीछे है| आम तौर पर अल्प संख्यक समाज उस दल के प्रति अपना रुख नरम रखता है,जिसके वादे लुभावने होते हैं| बहुसंख्यक मत प्रतिबद्धता का सहारा बनता है| दोनों ही गलतफहमी में होते हैं न तो वादे ही पूरे होते हैं और न प्रतिबद्धता पुरुस्कृत होती है| देश और प्रदेश, पांच साल तक मनमर्जी से चलता है, जन भावना से नहीं| दुर्भाग्य है देश की राजनीति को बड़े और छोटे दल सरकारों के प्रदर्शन और आर्थिक सुधार से भटका कर धर्म और समुदाय की और खींच रहे है| इसके उदाहरण असम से राजस्थान और जम्मू कश्मीर से लेकर तमिलनाडू तक मौजूद हैं|
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।
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