अनूपपुर में ये रहे भाजपा की हार के कारण

अनूपपुर(राजेश शुक्ला)। नगर पालिका के चुनावों में भाजपा ने पूर्व नपा अध्यक्ष को सभी जिम्मेदारियां सौंप दी। पार्टी ने यह नहीं सोचा कि एक व्यक्ति के कहने पर हम एैसे व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बना रहे हैं जिसे नगर में कोई नहीं जानता और वह भी एैसे व्यक्ति के दम भरने पर की मै भाजपा को जिता लाऊंगा।
पार्टी ने फिर यह नहीं सोचा कि आगे क्या होगा और योग्य प्रत्याशियों को दर किनार कर एक व्यक्ति के कहने पर टिकट दे दिया। किंतु भाजपा ने इसे जिताने के लिये ऐडी चोटी एक किया। इसकी जिम्मेदारी पूर्व जिलाध्यक्ष बृजेश गौतम एवं अनिल गुप्ता के साथ उस व्यक्ति को सौँपे जिसका उसी के क्षेत्र में जबरदस्त विरोध था। वरिष्ठ नेताओं ने जनता के मूड को नहीं भांप पाये और उस व्यक्ति का कहना मानकर विश्वास कर लिया। विधानसभा चुनाव के पहले यह अंतिम नगरपालिका चुनाव था, जिसे दोनों ही दल ने अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

नेता मंत्री भी नहीं बचा पाये लाज

भाजपा के संगठन मंत्री अरविंद मेनन के साथ प्रभारी मंत्री हरिशंकर खटीक, ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला एवं लोक निर्माण विभाग मंत्री नागेन्द्र सिंह को यहां की जिम्मेदारी सौंपी। इसके साथ ही संगठन की ओर से महामंत्री विनोद गौटिया, अल्पसंख्य मतदाताओं को रिझाने के लिये प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हिदायतुल्लाह शेख को यहां की जिम्मेदारी सौंपी गई, किंतु इन नेताओं ने नगर की नब्ज को बिना टटोले एक व्यक्ति के कहने पर अपनी पूरी ताकत लगाई, जबकि इन्हें इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि मतदाता भाजपा से नहीं अपितु पूर्व नपा अध्यक्ष से नाराज हैं। इसके साथ ही पार्टी के पदाधिकारी, कार्यकर्ता भी इनसे खुश नहीं थे। जिससे  नपा चुनाव के नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आये।

मुख्यमंत्री का ना आना भी बना हार का कारण

भाजपा ने इस नगरपालिका में कई बार अपना कब्जा जमाया है, किंतु लगातार एक ही व्यक्ति के कहने पर हर कार्य किया। जिससे पदाधिकारी और कार्यकर्ता दोनों नाराज रहे और पार्टी ने इस बार फिर वही गलती कर अपने पैरों मे कुल्हाडी मार ली। पार्टी अगर स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को मैदान में उतारती तो यह नौवत नहीं आती, बल्कि अच्छे मतों से नपा अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होती। एक कारण एैसा भी बना जब लोगों को छ: घंटे भूख, प्यास से तड़पते लोग इस आश में बैठे रहे कि म ुख्यमंत्री आ रहे हैं और चुनावी सभा को संबोधित करेंगे यह कहना उन भाजपाईयों का था जो आत्मविश्वास से लबालब थे कि यह सीट हमारी झोली में आ गई है। अंत में यही नेता इस बात की घोषणा की कि मुख्यमंत्री नहीं आ रहे हैं, जबकि अपने भाषण में कांग्रेस को दोहाई देते हुये कह रहे थे कि कांग्रेसी भ्रम फैला रहे हैं कि मुख्यमंत्री नहीं आयेंगे और अंत में वही साबित हुआ   और मुख्यमंत्री नहीं आये जिससे जनता नाराज हो गई और यह नाराजगी मत पेटियों में दिखा।

प्रत्याशी चयन में मनमानी

हार का कारण यह भी है कि प्रत्याशियों का ठीक ढंग से चयन ना होना। एक व्यक्ति के कहने पर पार्टी ने एैसे व्यक्तियों को अपना प्रत्याशी बनाया जो इसके काबिल नहीं थे। बल्कि नाम वापसी के दिन उन प्रत्याशियों को बदल दिया गया जो अपने वार्डो में जीत दिलाने वाले थे। यह भी उसी व्यक्ति के कहने पर किया गया। इतना ही नहीं कुछ प्रत्याशी उस व्यक्ति के पसंद के नहीं थे तो वे उन्हें हराने में अपनी कोई कोर कसर नहीं छोडी। सभी ने अपने वार्डो में जीत हासिल कर भाजपा का झण्डा लहराया।

विधायक ने दिखाया दम

एैसा ही कुछ हाल कांग्रेस का था। यहां पर एक व्यक्ति था जिन्हें इसकी पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वह अनूपपुर विधायक बिसाहू लाल थे। जिन्हें पार्टी ने पूरी जिम्मेदारी उन्हें सौंपकर यह कहा था कि यह सीट चाहिये और उन्होंने इसे हासिल कर प्रदेश और देश के नेताओं को दिखा दिया कि हममे कितना है दम । कांग्रेस में भी शुरू में इस बात का जबरदस्त विरोध था कि पूर्व अध्यक्ष के कहने पर पार्टी में उनके व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बनाया है और इसके लिये पार्टी को कई जगह परेशानियों का सामना करना पड़ा है और जनता के बीच यह भी कहना पड़ा कि यह प्रत्याशी किसी का रबर स्टाम्प नहीं है और ना होगा। यह योग्य और पढ़ा लिखा प्रत्याशी है तब कहीं पार्टी के पक्ष में माहौल बना।

नहीं बन पाया 88 लाख गबन का मुद्दा

विधायक श्री सिंह के कुशल रणनीति के कारण कांग्रेस एक बार पुन: इस सीट पर अपना कब्जा जमाये रखा। प्रचार के दौरान वह भी मुद्दे उठाये गये जो पार्टी के लिये गले की फांस बनी थी। पूर्व अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान नगर के विकास ना होना, ८८ लाख रूपये के गबन का मामला जो न्यायालय में चल रहा है इस तरह से एैसे कई मुद्दे थे जिन्हें विरोधी दल ने अपना हथियार बनाया। कांग्रेस के लिये सबसे बड़ा नुकसान उनके ही दल से टूटकर वह निर्दर्लीय प्रत्याशी के रूप में अपना पर्चा भरा इससे पार्टी ससंकित थी कि कही इस व्यक्ति के कारण हमें हार का सामना ना करना पडा और पार्टी अंतिम तक इससे आशंकित रही, किंतु मतदाताओं ने इस आशंका को दर किनार कर कांग्रेस को जिता कर पुन: अध्यक्ष को नगर के विकास की चाबी सौंपी।

क्या हैं समीकरण

नगर के मतदाता दोनों ही पूर्व अध्यक्षों से नाराज रही। कांग्रेस की ओर से बागी प्रत्याशी योगेन्द्र राय के खडे होने पर कांग्रेस को भय बना रहा कि हार जायेगी, वहीं भाजपा को इस बात का विश्वास था कि इसके खडे होने से भाजपा को फायदा मिलेगा। कांग्रेस के बाजार क्षेत्र के वोट निर्दलीय प्रत्याशी को मिलने से भाजपा के लोग उत्साहित थे कि कांग्रेस के वोट कट रहे हैं और भाजपा के नहीं। भाजपा नेता यह भूल गये कि हमारा विरोध हामारे घर मेें है। भाजपा को गढ़ कहा जाने वाला बस्ती क्षेत्र भाजपा नेता व पूर्व अध्यक्ष से नाराज है। जिसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी को मिला। चुनाव के दौरान कांग्रेस के नाराज वोट मतदाता निर्दलीय प्रत्याशी को अपना वोट किया तो बस्ती क्षेत्र के मतदाता भाजपा को वोट ना कर कांग्रेस को दिया। जिससे भाजपा का समीकरण पूरी तरह गड़बड़ा गया और इसमें कांग्रेस को जीत हासिल हुई।

भाजपा ने लगाया आरोप

इस पूरे चुनाव की हार का ठीकरा भाजपा ने जिला प्रशासन पर फोडते हुये कहा कि हमारी हार टेबल पर हुई है। ५११ मत निरस्त होने की बात भाजपाई कह रहे हैं जबकि यह मत पूरी तरह निरस्त हैं। इन मतों में कुछ में तो किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं किया गया है और कुछ में दो-दो जगह वोट करने के कारण निरस्त माना गया है। इसकी पुष्टि पार्टी द्वारा नियुक्त अभिकर्ताओं ने की है, जिन्होंने निर्वाचन अधिकारी को इस बात का संतुष्टि पत्र दिया है कि मतगणना पूरी तरह ठीक ढंग से हुई है। फिर भाजपाईयों द्वारा प्रशासन पर अपनी हार की जिम्मेदारी उन पर कैसे थोप सकती है। इन्हें तो इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये पार्टी के पदो से स्तीफा दे देना चाहिए। अपनी हार छुपाने के लिये संगठन के सामने प्रशासन को जिम्मेदार बता रहे हैं। इन्हें अपने मतगणना अभिकर्ता से भी जान लेना चाहिए कि क्या सही क्या गलत है। किंतु इन्होंने बिना जानकारी के प्रशासन को अपनी हार का जिम्मेदार बना दिया।

प्रशासन पर यह आरोप लगाया कि कलेक्टर नंद कुमारम् ने मनमानी करते हुये पार्षदों की मतगणना के साथ-साथ अध्यक्ष की मतगणना करा दिया। और आनन फानन में कांग्रेस उम्मीदवार को जीत का प्रमाण पत्र भी दे दिया।

जबकि प्रशासन इस बात को खारिज करते हुये कहा कि यह आरोप निराधार है। लगभग एक घंटे इंतजार करने पर जब कोई दोबारा मतगणना का आवेदन नहीं आया तो प्रशासन अपना निर्णय दे दिया।  और फिर भाजपाईयों के पास इस बात का कोई आधार नहीं था कि दोबारा मतगणना क्यों कराई जाये। इस दौरान जिला निर्वाचन अधिकारी के अलावा निर्वाचन आयोग द्वारा भेजे गये प्रेक्षक भी मौजूद थे।

पार्टी को विधायक ने दिखाया आईना

इस चुनाव से जुडे भाजपा नेताओं ने इसे भाजपा की हार नहीं मानते, बल्कि प्रशासन द्वारा जानबूझकर किया गया कार्य मानते हैं, जबकि हकीकत कोतमा भाजपा विधायक दिलीप जयसवाल ने कहा कि यह आरोप गलत है कि जिला प्रशासन ने गड़बडी की है, बल्कि पार्टी द्वारा गलत उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया। जिसके कारण यह हार हुई है। इसके पीछे ओमप्रकाश द्विवेदी, बृजेश गौतम, अनिल गुप्ता हैं, जिन्हें चुनाव की कमान सौंपी गई थी। यह चुनाव पार्टी स्तर का नहीं माना जा सकता । यह स्थानीय स्तर से लड़ा जाता है। मतदाताओं ने इन नेताओं को नीचा दिखाया है और यह बता दिया कि पार्टी में इनका कोई वजूद नहीं है। भाजपा विधायक दिलीप जयसवाल ने एकदम सटीक बात कही। इस बात की पुष्टि प्रभारी मंत्री हरिशंकर खटीक  ने की कि प्रशासन की गलती नहीं है।

यह हार भाजपा की नहीं अपितु  व्यक्ति की हार है। स्थानीय स्तर की चुनाव व्यक्ति या स्थानीय स्तर पर लडे जाते हैं पार्टी स्तर पर नहीं । नाराज मतदाताओं ने पूर्व अध्यक्षों से नाराज होकर मतदान किया। जिन मतदाताओं को भाजपा ने अपना मान रखा था वही मतदाओं ने व्यक्ति से नाराज होकर कांग्रेस को वोट किया और कांग्रेस ५० मतों से जीत हासिल की। जबकि कांग्रेस को इस बात का विश्वास नहीं था कि उसके सामने उनके पार्टी का ही बागी प्रत्याशी खडा है।

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