राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश ने बहुत राजनीति देखी है| इसने कांग्रेस, जनसंघ फिर भारतीय जनता पार्टी को देश की राजनीति में चमकदार एवं द्बद्बेदार नेता दिए है| इसके विपरीत अब जो पौध तैयार हो रही है, उसने अपने वरिष्ठों से कुछ नहीं सीखा| आगे के दृश्य की झांकी घटी घटनाओं में दिखती है और परिणाम बिहार के राजनैतिक दृश्य से मिलता जुलता दिखाई देता है|
पिछले एक दशक को देखें तो याद आती है चंद घटनाएँ | जैसे विक्रम विश्वविद्यालय में प्रो० सभरवाल प्रकरण, मुख्यमंत्री के परिवार का उपहास, राघव सांकला कांड में द्विअर्थी संवाद, अधिकारीयों को देखलेने की धमकी , सन्गठन चुनाव में गोलीबारी, धारा १४४ लगाकर जन आशीर्वाद यात्रा और नेता प्रतिपक्ष की कार पर हमला |
क्या है यह सब ? विचार का विषय है राजनैतिक दल के अनुषांगिक संगठन कहा से इतनी ताकत पाते है कि सरकारी अधिकारियों पर हाथ डाल देते हैं | केबिनेट मंत्री मुख्यमंत्री के परिवार का उपहास उड़ाते है, फिर कौन सा दबाव या मजबूरी मुख्यमंत्री के सामने आती है,जो... | अपने आराध्य को भी गन्दी राजनीति में घसीटने से बाज़ नहीं आते, कुछ भी कहने बाद आराध्य का इस्तेमाल साबुन की तरह करते हैं | पूर्व सांसद सरकार बनी नहीं है और अधिकारीयों को देखने की धमकी दे रहे हैं | अब नेता प्रतिपक्ष पर हमला भी होरहा है |यह सब क्या है?
यही सन्गठन चुनाव में गोली चलाने वाले बाद में अपनी सेनाये खड़ी करेंगे | द्विअर्थी संवाद का थोडा सा मज़ा आपके कार्यकर्ताओं में संयम और मर्यादा जैसा गुण समाप्त कर देगा | शस्त्रों के प्रदर्शन के साथ आशीर्वाद यात्रा नहीं होती है| मुख्यमंत्री अगर सदन का नेता है तो नेता प्रतिपक्ष का सम्मान किसी मंत्री से ज्यादा होता है | दोनों ही ओर संतुलन बिगड़ा हुआ है और परिणाम मध्यप्रदेश में बिहार जैसी राजनीति ही दिखाई देता है |
