भोपाल। परीक्षा में नकल करके आईएएस अफसर बनने का आरोप झेलते हुए अनुपम राजन को पूरे 20 साल हो गए, परंतु अंतत: वो जीत ही गए। अब कोई उन पर यह आरोप नहीं लगा सकता कि वो फर्जी आईएएस हैं।
जेएनयू के छात्र अनुपम राजन ने वर्ष 1992 में लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की थी। उन्हें 52वां रैंक भी मिला था लेकिन जैसे ही उन्हें आईएएस अधिकारी के तौर पर काम करना शुरू किया, उस पर धोखाधड़ी का आरोप लगा दिया गया। राजन पर सिविल सर्विस परीक्षा में नकल करके पास होने का आरोप लगा और सीबीआई मामले की जांच करने लगी। इसके चलते उनकी पदोन्नति और सुविधाओं पर रोक लगा दी गई।
20 साल तक इंतजार करने और कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद इस मामले में बीते शनिवार को फैसला आया और मध्यप्रदेश काडर के अधिकारी राजन को निर्दोष पाया गया। सिटी कोर्ट में मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट लोकेश कुमार शर्मा ने दो दशकों तक चले केस के बाद उन्हें निर्दोष बताया। इसके बाद अब उन्हें रोकी गई पदोन्नति और सुविधाएं मिलेंगी।
अनुपम राजन ने वर्ष 1992 में सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास करने के बाद अगले साल 1993 में दो और छात्रों के साथ फिर से प्रारंभिक परीक्षा दी थी। उनमें से एक साथी जमाल परीक्षा कक्षा में राजन के बगल में ही बैठे थे। इस परीक्षा में जमाल पास हो गए थे लेकिन राजन और तीसरी मित्र फेल हो गए थे। इस परीक्षा में फेल होने के बाद राजन को पता चला कि वह वर्ष 1992 में दी गई परीक्षा में पास हो गए हैं। उसके बाद उन्होंने मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार भी पास कर लिया। लेकिन कुछ ही समय में राजन के साथ परीक्षा देने वाली उनकी मित्र ने उनके खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करा दी ।
राजन पर आरोप लगा कि उन्होंने जमाल के साथ अपनी आंसरशीट बदल ली, ताकि वह परीक्षा पास कर सकें। राजन और जमाल की आंसरशीट में कथित तौर पर लिखावट एक जैसी होने के कारण सीबीआई ने वर्ष 1995 में उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। चार साल बाद सिटी कोर्ट ने राजन और जमाल के खिलाफ नकल और धोखाधड़ी के आरोप तय कर दिए। इसके बाद राजन और जमाल ने दिल्ली हाइकोर्ट में अपील की।
तेरह साल बाद मामला फिर से निचली अदालत में भेजा गया। यहां राजन और जमाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी उन्हें दोषी साबित करने में असफल साबित हुई है। कोर्ट ने परीक्षक के बयान पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि उन्होंने परीक्षा में किसी भी तरह कि अनियमितता नहीं देखी थी।
कोर्ट ने सीबीआई की इस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि एक साल परीक्षा पास करने वाला शख्स अगले साल फेल कैसे हो सकता है। न्यायाधीश ने लिखावट की समानता की बात भी नकार दी। इस फैसले और आरोप का जमाल पर कोई खास असर नहीं पड़ा क्योंकि वह बाद में मुख्य परीक्षा पास नहीं कर पाए थे।