भोपाल| प्रदेश कांग्रेस की पार्टटाइम पॉलिटिक्स करने वाले कांतिलाल भूरिया भले ही प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर डटे हों परंतु वो इस पोस्ट को डिजर्व कतई नहीं करते। एक बार फिर उन्होंने इस आरोप को प्रमाणित कर दिया। उन्हें मालूम ही नहीं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कुल कितने विधायक हैं।
राज्य में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करने के लिए शनिवार को दिल्ली में चुनाव अभियान समिति की बैठक हुई। इस बैठक में सभी वर्तमान विधायकों को टिकट देने पर सहमति बनी। साथ ही एक हजार से कम वोट से हारने वाले उम्मीदवार को फिर से मैदान में उतारने का मन बनाते हुए, समिति की राय स्क्रीनिंग कमेटी को भेजी गई है।
बैठक के बाद पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने संवाददाताओं से चर्चा के दौरान साफ किया कि कांग्रेस 65 वर्तमान विधायकों ओर सात ऐसे उम्मीदवारों केा फिर मैदान में उतारने की तैयारी में है जो एक हजार से कम मतों के अंतर से हारे हैं।
राज्य विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं, जिनमें भाजपा की 152 (एक विधानसभा अध्यक्ष शामिल), कांग्रेस 65 (निष्कासित विधायक चौधरी राकेश सिंह सहित), बहुजन समाज पार्टी (बसपा)-सात, निर्दलीय-तीन, समाजवादी पार्टी (सपा)-एक और दो स्थान रिक्त हैं। विधानसभा की वेबसाइट पर देखें तो कांग्रेस के विधायकों की कुल 65 है, जिसमें पांचवें नंबर पर निष्कासित विधायक चतुर्वेदी का नाम है।
बीते विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा दौरान तत्कालीन कांग्रेस विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने पार्टी के खिलाफ बगावत करते हुए प्रस्ताव का विरोध कर दिया था। इससे पार्टी की सदन के भीतर खूब किरकिरी हुई थी।
चतुर्वेदी ने इसके बाद भाजपा में शामिल होने का ऐलान किया, वहीं कांग्रेस ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। इस तरह चतुर्वेदी जब कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं हैं तब कांग्रेस के विधायकों की संख्या 64 रह जाती है।
प्रदेश चुनाव अभियान समिति की बैठक के बाद भूरिया द्वारा दिए गए कथन को सही मानें और विधानसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या के पर नजर दौड़ाएं तो यह जान पड़ता है कि कांग्रेस ने टिकट देने की जिस गिनती का खुलासा किया है, उसमें चतुर्वेदी की भी गणना कर ली गई है।
सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस की बैठक में क्या इस बात पर गौर नहीं किया गया कि एक विधायक पार्टी छोड़कर जा चुका है, या जल्दबाजी में नामों पर चर्चा किए बगैर संख्या के आधार पर सभी विधायकों को उम्मीदवार बनाने पर सहमति बना ली गई।