भोपाल। मध्य प्रदेश के सिंगरौली में महान कोलफील्ड के विरोध में मुखर होकर उठी जनता की आवाज दबाने की सारी कोशिशें धरी रह गईं। कंपनी द्वारा दी गई लालच और धमकी धरी रह गई।
रविवार को अमिलिया (सिंगरौली) में महान संघर्ष समिति द्वारा वन अधिकार सम्मेलन आयोजित सफलता से किया गया। इस सम्मेलन में कुल ग्यारह गांवों के ग्रामीणों ने एकजुट हो अपनी जमीन और जंगल को कोयला खदान में न बदलने का संकल्प लिया।
सम्मेलन में आए लोगों ने एक स्वर में वनाधिकार अधिनियम के तहत अपने जंगल पर अधिकार लेने संबंधी घोषणा पत्र को पारित किया। नियामगिरी में ग्राम सभा की सफलता से प्रेरित और केन्द्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री के.सी देव से दिल्ली में मुलाकात के बाद उत्साहित महान संघर्ष समिति ने के ग्रामिणों से अपील किया है कि वे कोयला खदान के खिलाफ उनकी लड़ाई में साथ दें।
जनसंघर्ष मोर्चा के अनुराग मोदी ने महान संघर्ष समिति का समर्थन करते हुए कहा कि “मध्यप्रदेश सरकार का विकास का पूरा मॉडल असफल हो चुका है। चाहे कोयले से बिजली बनने वाली हो या परमाणु से बिजली उत्पादित किया जाय। यह सब सिर्फ प्रदेश के संसाधन की लूट ही साबित हुई है। इस विकास के मॉडल पर पूर्नविचार करने की जरुरत है। थोड़े समय की बिजली के लिए संसाधनों को नष्ट करना बंद करना होगा”।
सम्मेलन में भाग लेने आए जनसंघर्ष मोर्चा के अन्य नेता सुनील भाई, माधुरी कृष्णास्वामी, जनचेतना मंच के राजेश जी, एमएमपी के युसुफ भाई आदि ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया। महान संघर्ष समिति के सदस्य और अमिलिया गांव निवासी बेचनलाल ने कहा कि “हमलोगों को खुशी है कि इतने सारे लोग अपने जंगल-जमीन को बचाने के लिए एक जगह इकट्ठा हुए हैं। अधिक से अधिक गांव वालों को महान संघर्ष समिति के बैनर तले खड़े होकर शांतिपूर्वक तरीके से संघर्ष करना होगा। केन्द्रीय मंत्री के समर्थन से हमारा उत्साह बढ़ा है लेकिन हमें नियमगिरी की तरह स्थानिय स्तर पर लड़ाई को मजबूत करना होगा”।
बीते 19 जूलाई को एक संयुक्त प्रेस सम्मेलन में केन्द्रीय जनजातीय मंत्री के.सी देव ने मध्यप्रदेश सरकार की वनाधिकार कानून के उल्लंघन के लिए निंदा की। उन्होंने गांव वालों को आश्वस्त किया कि अमिलिया ग्राम सभा में पारित उस प्रस्ताव की जांच की जाएगी, जिसमें खदान के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गयी। आरटीआई की मदद से निकाले गए उस प्रस्ताव की कॉपी से पता चला है कि उसमें ज्यादातर हस्ताक्षर फर्जी हैं और कई हस्ताक्षरित नाम के लोगों का निधन भी हो चुका है।
महान संघर्ष समिति के साथ काम कर रही ग्रीनपीस की सीनियर अभियानकर्ता प्रिया पिल्लई ने दो सालों से चल रहे इस आंदोलन के अहिंसक बने रहने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि “वनाधिकार कानून 2006 के अनुसार महान जंगल पर जीविकोपार्जन के लिए निर्भर लोगों को वनाधिकार मिलना चाहिए”। प्रिया ने आगे कहा कि “महान कोल ब्लॉक को कोयला खदान आवंटन करने का मतलब होगा 14,190 लोगों के जीविकोपार्जन को खत्म करना। 2001 जनगणना के अनुसार इनमें से 5,650 आदिवासी समुदाय के लोग हैं। महान कोल ब्लॉक आवंटित करने का मतलब यह भी होगा कि दूसरे कोल ब्लॉक के लिए दरवाजे खोल देना। इनसे पूरे क्षेत्र के जंगल टुकड़ों में बदल जाएंगे। महान संघर्ष समिति जंगलों और लोगों के अधिकारों को बचाने के लिए संकल्पबद्ध है”।
सम्मेलन में पारित “महान घोषणा पत्र” को महान संघर्ष समिति के विरेन्द्र सिंह ने उपस्थित लोगों के साथ साझा किया। इसमें सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि महान के लोग अपने जंगल-जमीन को नहीं छोड़ेगे। साथ ही, शांतिपूर्वक तरीके वनाधिकार कानून लागू करवाने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करेंगे।
उजराज सिंह खैरवार ने सभा में उपस्थित लोगों को महान संघर्ष समिति के झंडे के बारे में बताया। झंडे में हरा रंग हरियाली का प्रतीक है, महुआ का पेड़ गांव वालों का महुआ से जुड़े जीविका पर निर्भरता को दर्शाता है। वहीं, मोर का पंख जंगल में निवास करने वाले जानवरों के प्रति गांव वालों के स्नेह का प्रतीक है। झंडे में एक-दूसरे का हाथ पकड़े लोग जंगल पर अपने अधिकारों के लिए अपनी संकल्पबद्धता को दर्शाते रहे हैं। वहीं तेंदु का पत्ता भी लोगों की जीविका के लिए जंगलों पर निर्भरता को प्रकट करती है।